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________________ रोग-उपचार आचारांग सूत्र के छठे अध्ययन में सोलह प्रकार के रोगों का उल्लेख किया गया है ।१२६ १. गंडी-वात, पित्त, शलेष और सन्निपात-ये चार गंडी रोग हैं। इसे माला रोग भी कहा जाता है अर्थात् गंडमाला नाम भी प्रसिद्ध है। २. कोढ़ी-अर्थात् कुष्ठी, कुष्ठ रोगी, इस रोग के अठारह भेद गिनाये गये हैं। इनमें से सात महाकुष्ट रोग हैं, जैसे-अरुण, उदुम्बर, निश्य, जिन्ह, कपाल, कापनाद, पौण्डरीक और ददु । ग्यारह क्षुद्र कुष्ट रोग हैं, जैसे-स्थूलारुस्क, महाकुष्ट, ककुष्ठ, चर्मदल, परिसर्प, विसर्प, सिध्म, विचर्चिका, किटिभ, पामा और शवारुक आदि। ३. राजसी-राजसी, राजांसी, राजयक्ष्मा, दमा। ४. अपस्मात–वात, पित्त, श्लेष्म और सन्निपातज की अपेक्षा से चार प्रकार का है। इसमें व्यक्ति सत् और असत् के विवेक से रहित हो जाता है तथा भ्रम मुर्छा काम अवस्था का अनुभव करने लगता है। भ्रम के आवेश से संशरण करने लगता है। दोष युक्त होकर स्मृतिहीन हो जाता है। ५. काणिक-अक्षी रोग ६. झिमिय-जड़ता ७. कुणिय-गर्भ रोग ८. खज्जिय-कुबड़ापन ९. उदरि-जलोदर आदि रोग १०. मूय-गूंगा ११. सूणीय-सूनत्व (अवयवों का शून्य हो जाना) १२. गिलासणी-भस्मक व्याधि १३. बेबई कम्पन १४. पीठसपि - जन्तु गर्भ दोष १५. सिलिवय-स्लीपद (कठोर पैर) १६. महु मेहणि-मधुमेह, प्रमेय इस तरह के रोगों का उल्लेख आचारांग में किया गया है। उन रोगों के निदान के लिये कई प्रकार के उपचारों का उल्लेख किया गया है। जैसे-श्वास रोग के रोगी के लिये द्रव्य औषधी की अपेक्षा गात्र का (शरीर के) संशोधन, शोधन और विरेचन की आवश्यकता होती है। शरीर को पुष्ट करने के लिये सहस्र पाक तेल की आचाराङ्ग-शीलाडूवृत्ति : एक अध्ययन १९५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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