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________________ निक्षेप के प्रकार आगमों में निक्षेप के मूल रूप से चार भेद किये गये हैं—९१३ १. नाम-निक्षेप-पदार्थ का नामाश्रित व्यवहार २. स्थापना-निक्षेप-पदार्थ का आकाराश्रित व्यवहार ३. द्रव्य-निक्षेप-पदार्थ का भूत और भावी पर्यायाश्रित व्यवहार ४. भाव-निक्षेप-पदार्थ का वर्तमान पर्यायाश्रित व्यवहार आचारांग वृत्तिकार ने निक्षेप के (१) नाम (२) स्थापना (३) द्रव्य (४) क्षेत्र (५) काल और (६) भाव की अपेक्षा से छः भेद किये हैं। १४ • दिशा की अपेक्षा से सात निक्षेप इस प्रकार प्रतिपादित किये हैं. (१) नाम, (२) स्थापना, (३) द्रव्य, (४) क्षेत्र, (५) ताप, (६) प्रज्ञापक और (७) भाव । १५ __लोक की दृष्टि से निक्षेप के आठ भेद किये हैं- . (१) नाम, (२) स्थापना, (३) द्रव्य, (४) क्षेत्र, (५) काल, (६) भाव, (७) भाव और (८) पर्याय । १६ इसी तरह निक्षेप के अन्य भेद आगमों में किये जाते हैं। वर्गणा की दृष्टि से भी निक्षेप के छ: भेद किये गये हैं (१) नाम, (२) स्थापना, (३) द्रव्य, (४) क्षेत्र, (५) काल और (६) भाव। इस तरह वृत्तिकार की दृष्टि निक्षेप के भेदों को प्रतिपादित करने के लिए जिस रूप को प्राप्त हुई है उससे यही पता चलता है कि वे महावीर के सिद्धान्तों को सर्वव्यापी बनाने के लिए इस तरह की पद्धति को अपनाते रहे हैं। उन्होंने इसी प्रसंग में यह कथन किया है कि लोक जन्म का मूल स्थान है। मूल कषाय है, जिसे नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव पर्याय की प्राप्ति होती है । ११७ इसी लोक विजय अध्ययन के प्रथम उद्देशक में निक्षेप के १६ भेद भी गिनाये हैं, जैसे—(१) नाम, (२) स्थापना, (३) द्रव्य, (४) क्षेत्र, (५) काल, (६) भव, (७) भाव, (८) गमन, (९) करण, (१०) अभ्यास, (११) गुणागुण, (१२) अवगुण गुण, (१३) अनुगुण, (१४) शीलगुण, (१५) पर्याय गुण और (१६) रूप गुण१८ इत्यादि। निक्षेप को निम्न रेखांकित चित्र से समझा जा सकता है १४६ आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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