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________________ १. प्रथम श्रद्धालु और पीछे भी श्रद्धालु, २. प्रथम श्रद्धालु और पीछे अश्रद्धालु, ३. प्रथम अश्रद्धालु और पीछे श्रद्धालु, ४. प्रथम अश्रद्धालु और पीछे भी अश्रद्धालु । शंका, कांक्षा, विचिकित्सा आदि के परित्याग से सम्यक् दर्शन उत्पन्न होता है। सूत्रकार ने कहा है जो आत्मा है वही, विज्ञाता है जो विज्ञाता है वही आत्मा है। जिसके द्वारा वस्तु का स्वरूप जाना जाता है वही, ज्ञान आत्मा का गुण है उस ज्ञान के आश्रित ही आत्मा की प्रतीति होती है ।१३९ इसलिये आत्मा ज्ञान है और ज्ञान आत्मा है । ४० आत्मा को छोड़ कर ज्ञान अन्यत्र नहीं रह सकता है। षष्ठ उद्देशक सूत्रकार ने आचार्य को आज्ञानुवर्ती कहा है। ४१ वे तीर्थंकर, गणधर और आचार्यों के उपदेश को दृष्टि में रखकर साधना में लीन रहते हैं। वे धर्म आचरण पूर्वक सन्मार्ग पर गमन करते हैं ।१४२ इसलिये उनकी आज्ञा एवं आराधना उचित है। यदि ऐसा नहीं है तो वे गुरुकुल में निवास करते हुए भी जिन आज्ञा का अनुसरण नहीं कर पाते हैं। जगत में अनेक प्रवाद हैं१४३ इसलिये प्रवाद को प्रवाद से जानना चाहिए। कहा है कि मेरा न तो वीर जिनेश्वर में राग है न कपिल आदि अन्य दार्शनिकों से द्वेष है; किन्तु जिनके युक्तिसंगत वचन हैं, उनको ग्रहण करना चाहिए।१४४ इसमें विविध प्रवाद/मतों का विवेचन है। षष्ठ अध्ययन : धुत यह धुत/धूत अध्ययन के नाम से प्रसिद्ध है। धुत का अर्थ धुन डालना ४५ या धो डालना है। जिस प्रकार वस्त्र की मलिनता को दूर करने के लिए उसे धोया जाता है उसी तरह आत्मा की मलिन वृत्ति का परिशोधन करने के लिये समस्त कर्मों को धो दिया जाता है१४६ । धुत के वृत्तिकार ने दो भेद किये हैं १. द्रव्य धुत और २. भाव धुत ।१४७ द्रव्य धुत के भी दो भेद किये हैं१. आगम धुत और २. नोआगम धुत । भाव धुत के आठ भेद किये हैं। उनके नामों का संकेत नहीं किया है परन्तु चार घातिकर्म और चार अघातिकर्म अथवा ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय (घातिकर्म) तथा आयु, नाम, गोत्र और वेदनीय (अघातिकर्म) के रूप में हैं। इस प्रकार कुल आठ कर्म समस्त आगमों और सिद्धान्त ग्रन्थों में प्रतिपादित किये गये हैं । १४८ आचाराङ्ग-शीलाङ्कवृत्ति : एक अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004238
Book TitleAcharang Shilank Vrutti Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshree Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2001
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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