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________________ (२४) मूलाचार आचार्य कुन्दकुन्दकृत नहीं है मूलाचार और आचार्य कुन्दकुन्द के कुछ ग्रन्थों की गाथायें समान मिलने और मूलाचार के आचार्य वसुनन्दिकृत वृत्ति की कुछ अर्वाचीन पाण्डुलिपियों में आचार्य कुन्दकुन्द कृत होने के आधार पर मूलाचार को भी कुछ विद्वानों ने आचार्य कुन्दकुन्द की कृति सिद्ध करने का भी प्रयत्न किया है, किन्तु इन दोनों में अनेक असमानताओं के कारण ऐसा है नहीं । आचार्य कुन्दकुन्द वृत्तिकार तथा ऐलाचार्य के रूप में भी प्रसिद्ध है । इन आधारों पर भी वट्टकेर और कुन्दकुन्द को कुछ विद्वानों ने एक ही आचार्य सिद्ध करने का प्रयास किया है, किन्तु यह भी खींचतान मात्र ही है । अत: मूलाचार को आचार्य कुन्दकुन्द कृत मानने का कोई आधार ही नहीं बनता, दोनों में परस्पर भिन्नता भी है । अत: मूलाचार 'वट्टकेर' इस उपनाम (निवास स्थान का सूचक होने) से प्रसिद्ध एक समर्थ जैनाचार्य की स्वतन्त्र एवं मौलिक रचना है । आचार्य कुन्दकुन्द या अन्य किसी आचार्य की यह रचना नहीं है । संग्रहग्रन्थ भी नहीं है मूलाचार दिगम्बर और श्वेताम्बर परम्परा के कुछ आगम ग्रन्थों की गाथाओं से मूलाचार की कुछ गाथाओं की समानता के आधार पर कुछ विद्वानों ने उसे 'संग्रह-ग्रन्थ' भी सिद्ध करने का प्रयास किया था किन्तु यह तथ्य है कि तीर्थंकर महावीर की निर्ग्रन्थ परम्परा जब दो भागों में विभक्त हुई, उस समय समागत श्रुत दोनों ही परम्पराओं के आचार्यों को कंठस्थ था । अत: उन दोनों ने समान रूप से उसका उपयोग प्रसंगानुसार अपनी-अपनी रचनाओं में किया, इसीलिए कुछ समानताओं के आधार पर ही किसी मौलिक एवं स्वतन्त्र ग्रन्थ को 'संग्रह-ग्रन्थ' कह देना उस सम्पूर्ण विरासत के साथ अन्याय ही कहा जायेगा । कुछ समानताओं वाले अनेक प्राचीन ग्रन्थ तो हमें उस परम्परा के प्राचीनतम उन स्रोतों को खोजने का अवसर प्रदान करते हैं, जो तीर्थंकर महावीर की साधना और उनके श्रमण संघ की आचार संहिता से सीधे जुड़े थे । क्योंकि अर्धमागधी आगमों में श्रमणाचार के जिन नियमों और उपनियमों को निबद्ध किया गया है तथा शौरसेनी प्राकृत भाषा के इस मूलाचार में श्रमण की जो आचार संहिता निबद्ध है, इन दोनों की तात्त्विक और आध्यात्मिक विकास की प्रेरणा में कोई विशेष अन्तर प्रतीत नहीं होता । अहिंसा के जिस मूल धरातल पर श्रमणाचार का महाप्रासाद अर्धमागधी आगम में निर्मित है, उसी अहिंसा के मूल धरातल पर शौरसेनी प्राकृत में निबद्ध मूलाचार में भी श्रमणाचार का विशाल भवन निर्मित है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004237
Book TitleAavashyak Niryukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Jain, Anekant Jain
PublisherJin Foundation
Publication Year2009
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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