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________________ १४४ आवश्यकनियुक्तिः प्रभावनं प्रकाशनं । गुणाः शास्त्रज्ञातृत्वादयोऽर्थ: प्रयोजनं, आज्ञां मम सर्वोऽपि करोतु निदेशं मम सर्वोऽपि करोतु प्रमाणीभूतं मां सर्वोऽपि करोतु मम कीर्तिवर्णनं सर्वोऽपि करोतु, मां प्रभावयन्तु सर्वेऽपि मदीयान् गुणान् सर्वेऽपि विस्तारयन्त्वित्यर्थं कायोत्सर्गेण ध्यानमिदमप्रशस्तमेवंविधो मन:संकल्पोऽविश्वस्तोऽविश्वसनीयो न चिन्तनीयोऽप्रशस्तो यत इति ॥१८१॥ कायोत्सर्गनियुक्तिमुपसंहरन्नाहकाउस्सग्गणिजुत्ती एसा कहिया मए समासेण । संजमतवड्ढियाणं' णिग्गंथाणं महरिसीणं ।।१८२।। कायोत्सर्गनियुक्तिः एषा कथिता मया समासेन । संयमतपऋद्धिकानां निर्ग्रथानां महर्षीणां ॥१८२॥ कायोर्क्सनियुक्तिरेषा कथिता मया समासेन, संयमतपोवृद्धिमिच्छतां निर्ग्रन्थानां महर्षीणामिति, नात्र पौनरुक्त्यमाशंकनीयं द्रव्यार्थिकपर्यायार्थिकशिष्यसंग्रहणात्सूत्रवार्त्तिकस्वरूपेण कथनाच्चेति ॥१८२॥ कीर्ति (ख्याति) से प्रशंसा होवे, प्रभावना, प्रकाशन होवे, शास्त्र के जानने आदि रूप गुण प्रगट होवें । प्रयोजन को अर्थ कहते हैं अत: यह हमारा प्रयोजन सिद्ध होवे अर्थात् सभी लोग मेरी आज्ञा का पालन करें, सभी लोग मेरे आदेश के अनुसार प्रवृत्ति करे, सभी मुझे प्रमाणीभूत स्वीकार करें, सभी लोग मेरी प्रशंसा करें, सभी लोग मेरी प्रभावना करें, सभी लोग मेरे गुणों का विस्तार करें-इन प्रयोजनों से जो कायोत्सर्ग करते हैं, उनका यह सब ध्यन अप्रशस्त कहलाता है । इस प्रकार का मन:संकल्प अविश्वस्त अर्थात् ये सब चिन्तवन अप्रशस्त हैऐसा समझना चाहिए ॥१८१॥ कायोत्सर्ग नियुक्ति का उपसंहार करते हुए कहते हैं- गाथार्थ-संयम, तप और ऋद्धि के इच्छुक, निग्रंथ महर्षियों के लिए मैंने संक्षेप से यह कायोत्सर्ग नियुक्ति कही है ॥१८२॥ __आचारवृत्ति-संयम और तप की वृद्धि की इच्छा रखने वाले निर्ग्रन्थ महर्षियों के लिए कायोत्सर्ग नियुक्ति मैंने संक्षेप में कही है। यहाँ पर पुनरक्त दोष नहीं है क्योंकि द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक शिष्यों का संग्रह किया गया है तथा सूत्र और वार्तिक के स्वरूप से कथन किया गया है ॥१८२॥ १. अ० ब० संजमतवट्टयाणं, ग० तवड्ढयाणं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004237
Book TitleAavashyak Niryukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Jain, Anekant Jain
PublisherJin Foundation
Publication Year2009
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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