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________________ १२२ आवश्यकनियुक्तिः मोक्षमर्थयत इति मोक्षार्थी कर्मक्षयप्रयोजनः, जिता निद्रा येनासौ जागरणशीलः सूत्रञ्चार्थश्च सूत्रार्थी तयोर्विशारदो निपुणः सूत्रार्थविशारदः, करणेन क्रियाया परिणामेन शुद्धः करणशुद्धः आत्माहारशक्तिक्षयोपशमशक्तिसहितः कायोत्सर्गी विशुद्धात्मा भवति ज्ञातव्य इति ॥१५०॥ कायोत्सर्गमधिष्ठातुकामः प्राहकाउस्सग्गं मोक्खपहदेसयं घादिकम्म अदिचारं । इच्छामि अहिट्ठादं जिणसेविद देसिदत्तादो ।।१५१।। __कायोत्सर्ग मोक्षपथदेशकं घातिकर्म अतिचारं । इच्छामि अधिष्ठातुं जिनसेवितं देशितस्तस्मात् ॥१५१॥ . कायोत्सर्ग मोक्षपथदेशकं सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रोपकारकं घातिकर्मणां ज्ञानदर्शनावरणमोहनीयान्तरायकर्मणामतीचारं विनाशनं घातिकर्मविध्वंसकंमिच्छाम्याहमधिष्ठातुं यत: कायोत्सगों 'जिनैदेशितः. सेवितश्च तस्मात्तमधिष्ठातुमिच्छामीति ॥१५१॥ आचारवृत्ति—जो मोक्ष को चाहता है वह मोक्षार्थी है अर्थात् कर्म क्षय करने के प्रयोजन वाला है । जिसने निद्रा को जीत लिया है वह जागरणशील है । जो सूत्र और उनके अर्थ तथा इन दोनों में निपुण है, जो तेरह प्रकार की क्रिया, करण और परिणाम से शुद्ध-निर्मल है, जो आत्मा की आहार से होने वाली शक्ति और कर्मों के क्षयोपशम की शक्ति से सहित है ऐसा विशुद्ध आत्मा है जिसका वह कायोत्सर्गी होता है ॥१५०॥ . कायोत्सर्ग के अनुष्ठान की इच्छा करते हुए कहते हैं गाथार्थ-जो मोक्षमार्ग का उपदेशक है, घातिकर्म का नाशक है, जिनेन्द्रदेव द्वारा सेवित है और उपदिष्ट है-ऐसे कायोत्सर्ग को मैं धारण करता हूँ ॥१५१॥ आचारवृत्ति—जो मोक्षमार्ग का उपदेश अर्थात् सम्यक्दर्शन-ज्ञान और चारित्र का उपकारक है, घातियाकर्मों का अर्थात् ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय, इनका नाश करने वाला है, ऐसे कायोत्सर्ग का अनुष्ठान करना चाहता हूँ क्योंकि वह जिनेन्द्रदेवों द्वारा अनुभूत रहा है और उन्हीं के द्वारा कहा गया है ॥१५१॥ - १. ग. विनाशकं । २. क जिनेन्द्रैर्देशितः । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004237
Book TitleAavashyak Niryukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Jain, Anekant Jain
PublisherJin Foundation
Publication Year2009
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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