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________________ जैनदर्शन में 'आतप' के लिये सूर्य की धूप को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया है । विज्ञान ने भी सूर्य की धूप को ही आधार मानकर खोज की है। लगभग दो सौ वर्ष पूर्व प्रसिद्ध खगोल शास्त्री विलियम हर्शेल ने एक प्रयोग किया था । उसने सूर्य किरणों के एक पुँज को प्रिज्म द्वारा झुकाकार थर्मामीटर की सहायता से यह जाना कि वर्णक्रम में लाल रंग के नीचे थर्मामीटर रखा जाता है तो वह सबसे अधिक गर्म होता है। इससे यह परिणाम सामने आया कि सूर्य से आती हुई अदृश्य किरणें जिन्हें अवरक्त किरणें कहा जाता है, यही किरणें आतप की किरणें हैं । जिस प्रकार प्रकाश ऊर्जा की तरंगें हैं, उसी प्रकार अवरक्त किरणें भी ऊर्जा की तरंगे हैं और आज तो इस आतप रूप ऊर्जा का उपयोग बहुत कार्यों में होने लगा है। जैनदर्शन द्वारा प्रतिपादित 'आप' पुद्गल हैं। फोटो खींचकर विज्ञान ने प्रमाणित कर दिया कि 'आतप' पदार्थ है । क्योंकि फोटो पदार्थ का ही खींचा ता है शून्य का नहीं । तापचित्र लेने के कैमरे भी तैयार हो गये हैं । इन्हें थर्मोग्राफ कहा जाता है । ताप यदि पदार्थ न होता तो इसका चित्र लेना असंभव था । तापचित्र के उपयोग से स्तन कैंसर को, भूमि में छिपी गैसों को, इंजन को खोले या बंद किये बिना ही उसकी खराबियों को ढूँढ़ा जा सकता है I आशय यह है कि आज आतप या ताप की किरणों को ग्रहण किया जा सकता है तथा अनेक कार्यों में उसका उपयोग किया जा सकता है। विज्ञान के इस प्रयोगात्मक प्रस्तुतीकरण से अब सामान्य बुद्धिजीवी भी यह समझने लग गया कि वास्तव में आतप पुद्गल की ही पर्याय है । अकलंक ने आतप की व्याख्या इस प्रकार की है- “ असातावेदनीय के उदय से जो अपने स्वरूप को तपता है या जिसके द्वारा तपाया जाता है या आतपमात्र को आतंप कहते हैं ।' ११९४ उद्योतः - जो निवारण को उद्योतित करता है या जिसके द्वारा उद्योतित करता है या उद्योतनमात्र को उद्योत कहते हैं । १५ ९४. तं. रा. वा. ५.२४.१.४८५ ९५. त.रा.वा. ५.२४.१.४८५ Jain Education International २२९ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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