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________________ अक्षरकृत शब्द :- अक्षरकृत शब्दों से वाग्यव्यवहार होता है और म्चेल्छ आदि जाति के मनुष्यों और देवों मध्य व्यवहार का साधनभूत शब्द ही है, इसी के माध्यम से शास्त्र की अभिव्यक्ति होती है। अनक्षर शब्द:- अनक्षरात्मक शब्द द्वीन्द्रिय आदि के जीवों के होते हैं। जड़ पदार्थों में संघर्ष के कारण उत्पन्न होने वाली ध्वनि को अभाषात्मक शब्द कहते हैं। इसके के भी दो भेद हैं-- १. प्रायोगिक और २. स्वाभाविक (वैनसासिक)। प्रायोगिक :- प्रायोगिक शब्द निम्नलिखित चार प्रकार का होता हैततः- पुष्कर, भेरी, तबला, ढोलक आदि में चमड़े के तनाव के शब्द जो होते हैं वे तत हैं। वितत :- वीणा, सुघोष, आदि से जो शब्द होता है वह वितत है। .. घन:- ताल, घंटा आदि से जो शब्द होता है वह घन है। सौषिर :- बांसुरी, शंख आदि से निकलने वाला शब्द सौषिर है।६४ स्वाभविक:- मेघ आदि के निमित्त से जो शब्द उत्पन्न होते हैं वे स्वाभाविक . या वैनसिक हैं।६५ . जैनदर्शन ही एक ऐसा दर्शन है जिसने शब्दादिको पुद्गल की पर्याय के रूप में स्वीकार किया है । वैशेषिक आदि शब्द को आकाश का नित्य गुण मानते हैं, परन्तु जैन शब्द को पुद्गल की पर्याय विशेष मानकर उसे नित्यानित्य मानते हैं। शब्द पुद्गल द्रव्य की दृष्टि से नित्य और श्रोत्रेन्द्रिय के द्वारा सुनने योग्य पर्याय सामान्य की दृष्टि से कालान्तर स्थायी है और प्रतिक्षण की पर्याय की अपेक्षा क्षणिक है।६६ ... जैनदर्शन की शब्द विषयक मान्यता को पुष्ट करते हुए प्रो. ए. चक्रवर्ती ने लिखा है६४. त.रा.वा. ५.२४.२/४८५ एवं ठाणांग २.२१२-२१७ ६५. त.रा.वा. ५.२४ ५७२ ६६. त.रा.वा. ५.२४.५८८७ २१९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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