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________________ करता । जैसे बिजली के तार बिजली को, रेल की पटरी रेल को चलने के लिए प्रेरित नहीं करती अपितु उदासीन भाव से सहायक मात्र होती है, उसी प्रकार धर्मास्तिकाय भी उदासीन सहायक मात्र बनता है। प्रमेयकमलमार्तण्ड के अनुसार अनेक द्रव्य की एक साथ प्रवृत्ति या गति होना ही धर्मद्रव्य की यथार्थता और द्रव्यता को प्रमाणित करता है। उनके अनुसार सभी जीवों और पुद्गल द्रव्यों की पृथक्-पृथक् गतियों के लिए एक सामान्य और आन्तरिक परिस्थिति पर निर्भर होना अनिवार्य है। जैसे एक तालाब के पानी पर असंख्य मछलियों की गति निर्भर है।२३ । ___ जिस प्रकार स्वयं चलने में समर्थ लंगड़े को लाठी सहारा देती है या दर्शनसमर्थ नेत्र को दीपक का सहारा होता है उसी प्रकार स्वयं गतिमान जीवों को व पुद्गलों को धर्म द्रव्य गति में सहायता प्रदान करता है। लंगड़े व्यक्ति को लाठी न तो गति में प्रेरणा देती है, न कर्ता बनती है और न दर्शन शक्ति के अभाव में दीपक दर्शन की शक्ति उत्पन्न कर सकता है, लाठी और दीपक तो मात्र सहयोगी बनते हैं।२४ - जिस गतिसहायक पदार्थ को जैन दर्शन ने धर्मास्तिकाय कहा है, आधुनिक वैज्ञानिक अनुसन्धान के आधार पर उसी के समान गुण वाले द्रव्य को ‘Ether' (ईथर) कहते हैं। ईसा की १८ वीं/१९वीं शताब्दी में भौतिक विज्ञानवेत्ताओं के सामने एक बात स्पष्ट हो गयी कि यदि प्रकाश की तरंगों का अस्तित्व है तो उसका कोई आधार अवश्य होना चाहिए, ठीक वैसे ही, जैसे पानी सागर की तरंगों को पैदा करता है और हवा उन कंपनों को जन्म देती है जिन्हें हम ध्वनि कहते हैं । जब यह लगा कि 'प्रकाश' शून्य से भी होकर विचरण करता है, तब वैज्ञानिकों ने 'ईथर' तत्त्व की कल्पना की, जो उनके अनुसार समस्त आकाश और ब्रह्माण्ड में व्याप्त . बाद में फैरेड ने एक अन्य प्रकार के 'ईथर' की कल्पना की जो विद्युत् एवं चुंबकीय शक्तियों का वाहक माना गया। अन्ततः यह 'ईथर' की निश्चित और २३. प्रमेयकमल मार्तण्ड परि. ४.१० पृ. ६२३ २४. त.वा. ५.१७.२४.४६३ १६१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004236
Book TitleDravya Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreejiji
PublisherBhaiji Prakashan
Publication Year
Total Pages302
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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