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________________ ३. महाप्रत्याख्यान ___ महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक में प्रत्याख्यान त्याग का विस्तृत विवेचन किया गया है। इसमें १४२ गाथायें हैं। शैली पद्यात्मक है। ___ग्रन्थ के प्रारम्भ में तीर्थंकरों, सिद्धों और संयतों को नमस्कार किया गया है। पाप एवं दुष्कृत की निन्दा करते हुए बताया है कि पापों की आलोचना करनी चाहिए; क्योंकि सशल्य की आराधना निरर्थक होती है. और निःशल्य की आराधना सार्थक होती है। पंडितमरण का आराधक संसार को अशरणंभूत जानकर, सर्वविरति धारण कर, निदान (आकांक्षा) रहित मृत्यु को प्राप्त करता है। कर्मों का क्षय करता है। यदि उत्कृष्ट आराधक हो तो उसी भव में मोक्ष प्राप्त करता है। जघन्य, मध्यम आराधना से सात-आठ भव में तो अवश्य ही मोक्ष प्राप्त करता है। संक्षेप में शाश्वत सुख एवं अक्षय शान्ति के लिये भोगों का त्याग आवश्यक है। प्रत्याख्यान से साधना प्रदीप्त होती है। यही इस प्रकीर्णक का मूल घोष है। ४. भक्तपरिज्ञा इस प्रकीर्णक में मुख्य रूप से 'भक्तपरिज्ञा' नामक मरण का उल्लेख होने से इसका नाम 'भक्तपरिज्ञा है इसमें १७२ गाथायें हैं। इसके कर्ता आर्य वीरभद्र ___ इसके प्रारम्भ में बताया है कि वास्तविक सुख की प्राप्ति जिनाज्ञा की आराधना से होती है। तत्पश्चात् पंडितमरण (अभ्युद्यतमरण) के भक्तपरिज्ञा, इंगिनी और पादपोपगमन ये तीन प्रकार बताये हैं।2 भक्तपरिज्ञामरण के दो भेद किये हैं- (१) सविचार (२) अविचार। भक्तपरिज्ञा का वर्णन करते हुए कहा है कि जो सम्यग्दर्शन से भ्रष्ट है, उसकी मुक्ति नहीं होती। सम्यग् दर्शन से युक्त व्यक्ति ही मुक्ति का अधिकारी है। क्योंकि जहां सम्यक्त्व है वहां ज्ञानादि गुणों की प्रतिष्ठा है। इसमें मन को बन्दर की तरह बताया है; जैसे बन्दर कुछ समय के लिए भी शान्त नहीं बैठ सकता, वैसे मन भी विचारशून्य नहीं हो सकता। अतः मन को वश में - भक्तपरिज्ञा गाथा है। ५२ 'तं अब्भुज्जुओऽवि अमरणथम्मेहिं वन्निअं तिविहं । भत्तपरिन्ना इंगिणि पाओवगमं च धीरेहिं ।' ५३ 'दंसणभट्ठो भट्ठो दंसणभट्ठस्स नत्यि निव्वाणं। सिमति चरणरहिया सणरहिया न सिझति।।' - भक्तपरिज्ञा गाथा ६६ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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