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________________ १०२ आध्यात्मिक साधना सम्बन्धी और भी अनेक प्रश्न करते हैं उनके उत्तर में गौतमस्वामी आत्म विजय एवं आत्मानुशासन की प्रक्रिया, कषायविजय एवं इन्द्रियविजय के उपाय, . तृष्णा की दुःखरूपता, चंचल मन को एकाग्र करने के लिए धर्मशिक्षा की आवश्यकता, धर्म की विशिष्टता, साधना में शरीर की उपयोगिता आदि का सम्यक प्रकार से विवेचन करते हैं। इसमें विशेष रूप से चतुर्याम एवं अचेल धर्म की समन्वय दृष्टि से चर्चा की गई है। इस अध्ययन की यह चर्चा वर्तमानकालिक साम्प्रदायिक मतभेदों को सुलझाने में समन्वय-सूत्र का कार्य कर सकती है। इस प्रकार प्रस्तुत अध्ययन अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। २४. प्रवचनमाता : प्रस्तुत अध्ययन का नाम समवायांग सूत्र के अनुसार ‘समिइयो-समितीय' एवं उत्तराध्ययननियुक्ति के अनुसार 'प्रवचनमाता' है। यद्यपि दोनों का तात्पर्य एक है, क्योंकि समितियां प्रवचनमाता में अन्तर्भूत ही हैं। इसमें : २७ गाथायें हैं। इस अध्ययन में पांच समितियों एवं तीन गुप्तियों का विवेचन है। इन दोनों का समन्वित नाम अष्टप्रवचनमाता है। मां अपनी संतान को सतत् सन्मार्ग पर चलने एवं उन्मार्ग से बचने की प्रेरणा देती है। वैसे ही प्रवचनमाता मां की तरह साधक के संयम की देखभाल करती है। समिति का अर्थ सम्यक् प्रवृत्ति एवं गुप्ति का अर्थ अशुभ से निवृत्ति है। सम्यक प्रकार से गमनागमन, भाषण/वचन, आहार की एषणा, उपकरणों का आदान (ग्रहण), निक्षेप एवं मल-मूत्र का उत्सर्ग करना समिति है तथा मन, वचन एवं काया का गोपन या नियन्त्रण गुप्ति है। अष्टप्रवचनमाता मुनि की जीवन-व्यवस्था की नींव है। अतः यह अध्ययन विशेष महत्त्वपूर्ण है। समिति-गुप्ति का विस्तृत वर्णन इसी ग्रन्थ के १०वें अध्याय "उत्तराध्ययनसूत्र में प्रतिपादित श्रमणाचार' में किया गया है। - अंगसुत्ताणि लाडनूं, खण्ड प्रथम पृष्ठ ८५२ । समवायांग - ३६/१ १२ उत्तराध्ययननियुक्ति गाथा ४६० (नियुक्तिसंग्रह पृष्ठ ४१० ) ८३ 'इरियाभासेसणादाणे, उच्चारे समिई इय । मणगुत्ती वयगुत्ती, कायगुत्ती य अट्ठमा ।।' - उत्तराध्ययनसूत्र २४/२॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004235
Book TitleUttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinitpragnashreeji
PublisherChandraprabhu Maharaj Juna Jain Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages682
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size9 MB
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