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________________ जीवन रेखा १५ तो सिर्फ अाज का ही और है। कल तो केवल मेरी स्मृति मात्र ही रह जाएगी। इसलिए तुमसे भी क्षमित-क्षमापना करने आ गया।" उस समय उनका स्वास्थ्य अच्छा था। शरीर पर ऐसे कोई चिह्न दिखाई नहीं दे रहे थे कि जिससे ऐसी कल्पना कर सकें कि यह महापुरुष हम सबको छोड़कर आज ही चले जाएंगे। उनके जाने के बाद हम कुन्दन भवन पढ़ने के लिए गई। अध्ययन करने के बाद हम सदा कुछ देर तक महाराज श्री की सेवा में बैठती थीं । उस दिन भी सेवा में थी। वहाँ से चलते समय मुनि श्री भानुऋषिजी म. से पूछा तो उन्होंने बताया कि कल रात को १२ बजे ध्यान करते समय हाल कुछ क्षणों के लिए तेज प्रकाश से भर गया और उनके मुख से यह आवाज सुनाई दी कि "पैगाम पा गया है।" हम चार बजे कुन्दन भवन से अपने स्थानक में आई। सायंकाल प्रतिक्रमण के पश्चात् समाचार मँगवाए तो सुख-शान्ति के ही समाचार मिले । कोई चिन्ता जैसी बात नहीं थी। परन्तु, रात को चार-पाँच बजे कुन्दन भवन के बाहर हल-चल देखकर मन में कुछ सन्देह हुआ। और पूछने पर पता लगा कि परम श्रद्धय पूज्य-पिताश्री का स्वर्गवास हो गया । यह सुनते ही मन रो उठा और अपने अन्तिम समय के लिए उनके द्वारा कहे गये शब्द याद आने लगे। इस तरह वह महासाधक वि० सं २०१३ श्रावण कृष्णा दशमी की रात को अनन्त की गोद में सदा के लिए सो गया। आज उनका भौतिक शरीर हमारे सम्मुख नहीं है। परन्तु उनकी साधना, सरलता, सौजन्यता एवं दयालुता आज भी हमारे सामने है। उनके गुण प्राज भी जीवित हैं । अतः वे मरे नहीं, बल्कि मरकर भी जीवित हैं और • सदा-सर्वदा जीवित रहेंगे। –महासती उमराव कुंवर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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