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________________ अष्टम प्रकाश २४१ २. उत्तम-चत्तारि लोगुत्तमा–अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा । साहू लोगुत्तमा, केवलि-पण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो ॥ ३. भरण-चत्तारि सरणं पवज्जामि-अरिहंते सरणं पवज्जामि । सिद्ध सरणं पवज्जामि, साहू सरणं पवज्जामि । केवलि - पण्णत्तं धम्म सरणं पबज्जामि ।। पंचदशाक्षरी विद्या मुक्तिसौख्यप्रदां ध्यायेद्विद्यां पञ्चदशाक्षराम् । सर्वज्ञाभं स्मरेन्मत्रं सर्वज्ञान - प्रकाशकम् ॥ ४३ ॥ मुक्ति का सुख प्रदान करने वाली पन्द्रह अक्षरों की विद्या का ध्यान करना चाहिए तथा सम्पूर्ण ज्ञान को प्रकाशित करने वाले 'सर्वज्ञाभ' मंत्र फा स्मरण करना चाहिए । वह इस प्रकार हैं १. पंचदशामरी विद्या-ओं अरिहन्त-सिद्ध-सयोगिकेवली स्वाहा। ___२. सर्वज्ञाभ मंत्र-त्रों श्रीं ह्रीं अर्ह नमः । सर्वज्ञाभ-मन्त्र की महिमा वक्तुन कश्चिदऽप्यस्य प्रभावं सर्वतः क्षमः । समं भगवता साम्यं सर्वज्ञ न बित्ति यः ॥ ४४॥ यह सर्वज्ञाभ मन्त्र सर्वज्ञ भगवान् की सदृशता को धारण करता है, इसके प्रभाव को पूरी तरह प्रकट करने में कोई भी समर्थ नहीं है । सप्त-वर्ण मन्त्र - यदीच्छेद् भगवदावाग्नेः समुच्छेदं क्षणादपि । स्मरेत्तदाऽऽदि-मन्त्रस्य वर्णसप्तकमादिमम् ॥ ४५ ॥ ___जो संसार रूप दावानल को क्षण भर में शान्त करना चाहता है, उसे आदिमन्त्र के प्रारम्भ के सात अक्षरों का, अर्थात् 'नमो अरिहंताणं' का स्मरण करना चाहिए। For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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