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________________ पंचम प्रकाश २०६ यदि धान्य उत्पन्न होने के सम्बन्ध में वरुण-मंडल में प्रश्न किया जाए तो धान्य की उत्पत्ति होगी, पुरन्दर - पृथ्वी-मंडल में प्रश्न किया जाए तो बहुत बढ़िया धान्योत्पत्ति होगी, पवन-मंडल में प्रश्न किया जाए तो मध्यम रूप से उत्पत्ति होगी-कहीं होगी और कहीं नहीं होगी, और यदि अग्नि-मंडल में प्रश्न किया जाए, तो धान्य की बिल्कुल उत्पत्ति नहीं होगी। महेन्द्र-वरुणौ शस्तौ गर्भप्रश्ने सुतप्रदौ । समीर-दहनौ स्त्रीदौ शून्यं गर्भस्य नाशकम् ।। २३९ ।। गर्भ सम्बन्धी प्रश्न करते समय पार्थिव और वारुण-मंडल प्रशस्त माने गए हैं। इनमें प्रश्न करने पर पुत्र की प्राप्ति होती है। वायु और अग्नि-मंडल में प्रश्न करने पर पुत्री का जन्म होता है और सुषुम्णा नाड़ी चलते समय प्रश्न करे तो गर्भ का नाश होता है, ऐसा समझना चाहिए । गृहे राजकुलादौ च प्रवेशे निर्गमेऽथवा ।। पूर्णांगपादं पुरतः कुर्वतः स्यादभीप्सितम् ।। २४० ।। यदि गृह में या राजकुल आदि में प्रवेश करते समय या उनमें से बाहर निकलते समय पूर्णांग वाले पैर को, अर्थात् नाक के जिस तरफ के छिद्र से वायु निकलती हो, उस तरफ के पैर को पहले आगे रखकर चलने से इष्ट कार्य की सिद्धि होती है। कार्य-सिद्धि का उपाय - गुरु-बन्धु-नृपामात्या अन्येऽपीप्सितदायिनः। पूर्णांगे खलु कर्तव्याः कार्यसिद्धिमभीप्सता ।। २४१ ।। जो मनुष्य अपने कार्य की सिद्धि चाहता है, उसे गुरु, बंधु, राजा, अमात्य—मंत्री या अन्य लोगों को, जिनसे कोई अभीष्ट वस्तु प्राप्त करनी है, अपने पूर्णाग की तरफ रखना चाहिए, अर्थात् नासिका के जिस छिद्र में से पवन बहता हो, उस मोर उन्हें रखकर स्वयं बैठना चाहिए। १४ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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