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________________ योग शास्त्र १९४ मृत्यु होती है और उदर - पेट दिखाई न दे, तो उसके धन का नाश होता है । यदि उसे अपना गुह्य स्थान दिखाई न दे, तो उसके पिता आदि' किसी पूज्य जन की मृत्यु होती है और यदि दोनों जांघें दिखाई नहीं दें, तो उसके शरीर में व्याधि उत्पन्न होती है । यदि उसे अपने पैर न दीखें तो उसे विदेश यात्रा करनी पड़ती है और यदि उसे ही दिखाई न दे, तो उसकी शीघ्र ही मृत्यु होती है । कालज्ञान के अन्य उपाय अपना समग्र शरीर विद्यया दर्पणागुष्ठ कुड्यासिष्वतारिता । विधिना देवता पृष्टा ब्रूते कालस्य निर्णयम् ॥ १७३ ॥ सूर्येन्दु ग्रहणे विद्यों नरवीरे - उठेत्यसौ 1 साध्या दशसहरुयाष्टोत्तरया ४ जपकर्मतः ।। १७४ ।। अष्टोत्तरसहस्रस्य जापात् कार्यक्षणे पुनः । देवता लीयतेऽस्यादौ, ततः कन्याऽऽह निर्णयम् ॥ १७५ ॥ - सत्साधक - गुणाकृष्टा स्वयमेवाथ देवता । त्रिकाल - विषयं ब्रूते निर्णयं गतसंशयम् ॥ १७६ ।। दर्पण, अंगूठे, दीवार या तलवार आदि पर विद्या के द्वारा विधिपूर्वक अवतरित की हुई देवता आदि की प्रकृति प्रश्न करने पर काल-मृत्यु का निर्णय बता देती है । सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय 'ॐ नरवीरे ठः ठः स्वाहा' का दस हजार आठ बार जाप करके विद्या की साधना करनी चाहिए । जब उस विद्या से कार्य लेना हो तो एक हजार आठ बार जाप करने से वह दर्पण, तलवार आदि पर अवतरित हो जाती है । १. कुड्यादिष्वतारिता । २. विद्या । ३. नरवीरठवेत्यसौ । ४. दश सहस्राष्टोत्तरया । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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