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________________ पंचम प्रकाश १८७ रश्मि-निर्मुक्तमादित्यं रश्मियुक्तं हविर्भुजम् ।। यदा पश्येद्विपद्येत तदैकादश-मासतः ॥ १३८ । यदि कोई व्यक्ति सहस्ररश्मि-सूर्यमण्डल को किरण-विहीन खे और अग्नि को किरण-युक्त देखे, तो वह मनुष्य ग्यारह मास में मृत्यु को प्राप्त होता है। वृक्षाने कुत्रचित्पश्येत् गन्धर्व-नगरं यदि । पश्येत्प्रेतान् पिशाचान् वा दशमे मासि तन्मृतिः ।। १३६ ।। यदि किसी व्यक्ति को किसी जगह गंधर्वनगर-वास्तविक नगर का प्रतिबिम्ब वृक्ष के ऊपर दिखाई दे अथवा प्रेत या पिशाच प्रत्यक्ष रूप से दृष्टिगोचर हो, तो उसकी दसवें महीने में मृत्यु होती है। छदि-मूत्र-पुरीषं वा सुवर्ण-रजतानि वा। स्वप्ने पश्येद्यदि तदा मासान्नव जीविति ।। १४० ॥ यदि कोई व्यक्ति स्वप्न में उलटी, मूत्र, विष्ठा, सोना और चाँदी देखता है, तो वह नौ महीने तक जीवित रहता है।' स्थूलोऽकस्मात् कृशोऽकस्मादकस्मादतिकोपनः । अकस्मादतिभीरुर्वा मासानष्टैव जीवति ॥ १४१ ।। जो मनुष्य अकस्मात् अर्थात् बिना कारण ही मोटा हो जाए या अकस्मात् ही कृश-दुबला हो जाए या अकस्मात् ही क्रोधी हो जाए या अकस्मात् ही भीरु-कायर हो जाए, तो वह आठ महीने तक ही जीवित रहता है। . समग्रमपि विन्यस्तं पांशौ वा कर्दमेऽपि वा । स्याच्चेत्खण्डं पदं सप्तमास्यन्ते म्रियते तदा ॥१४२ ॥ १. श्री केशर विजयजी महाराज के विचार से यह फल रोगी मनुष्य की अपेक्षा से होना चाहिए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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