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________________ पंचम प्रकाश वामैवाभ्युदयादीष्ट शस्तकार्येषु सम्मता । दक्षिणा तु रताहार - युद्धादौ दीप्त-कर्मणि ॥ ६४ ॥ अभ्युदय आदि इष्ट और प्रशस्त कार्यों में बांयीं नाड़ी अच्छी मानी गई है और मैथुन, आहार तथा युद्ध श्रादि दीप्त कार्यों में दाहिनी नाड़ी उत्तम मानी गई है । टिप्पण - यात्रा, दान, विवाह, नवीन वस्त्राभूषण धारण करते समय, ग्राम- नगर एवं घर में प्रवेश करते समय, स्वजन -मिलन, शान्ति-कर्म, पौष्टिक कर्म, योगाभ्यास, राज-दर्शन, चिकित्सा, मैत्री, बीज - वपन, इत्यादि कार्यों के प्रारम्भ में बांयीं नाड़ी शुभ होती है और भोजन, विग्रह, विषयप्रसंग, युद्ध, मंत्र-साधन, व्यापार आदि कार्यों के प्रारम्भ में दाहिनी नाड़ी शुभ मानी गई है। पक्ष और नाड़ी वामा शस्तोदये पक्षे सिते कृष्णे तु दक्षिणा । त्रीणि त्रीणि दिनानीन्दु सूर्ययोरुदयः शुभः ।। ६५ ।। शुक्ल पक्ष में सूर्योदय के समय बांयीं नाड़ी का उदय शुभ माना गया है और कृष्ण पक्ष में सूर्योदय के समय दाहिनी नाड़ी का उदय शुभ माना गया है । यह बांयीं और दाहिनी नाड़ी का उदय तीन-तीन दिन तक शुभ माना जाता है । १६ε शशांकेनोदयो वायोः सूर्येणास्तं शुभावहम् । उदये रविणा त्वस्य शशिनास्तं शिवं मतम् ॥ ६६ ॥ सूर्योदय के समय वायु का उदय चन्द्र स्वर में हुआ हो, तो उस दिन सूर्य स्वर में अस्त होना शुभ और कल्याणकारी है । यदि सूर्य स्वर में उदय श्रौर चन्द्र स्वर में अस्त हो तब भी शुभ होता है । नाड़ी - उदय का स्पष्टीकरण Jain Education International सितपक्षे दिनारम्भे यत्नतः प्रतिपद्दिने । वायोर्वीक्षेत सञ्चारं प्रशस्तमितरं तथा ॥ ६७ ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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