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________________ तृतीय प्रकाश ९३ बछड़ों को चराने वाला संगम नामक ग्वाला मुनिदान के प्रभाव से आश्चर्यजनक सम्पत्ति का अधिकारी बन गया। अतिचार त्याग व्रतानि सातिचाराणि, सुकृताय भवन्ति न । अतिचारास्ततो हेयाः पञ्च पञ्च व्रते व्रते ॥ ८६ ॥ जिस आचार से स्वीकृत व्रत आंशिक रूप से खंडित होता है, वह 'अतिचार' कहलाता है। अतिचार युक्त व्रत कल्याण करने वाले नहीं होते । अतः प्रत्येक व्रत के जो पाँच-पाँच अतिचार हैं, उनका त्याग करना चाहिए। १. अहिंसा-व्रत के अतिचार क्रोधाद् बन्ध छविच्छेदोऽधिकभाराधिरोपणम् । प्रहारोऽन्नादिरोधश्चाहिंसायां परिकीर्तिताः ॥ १० ॥ १. बन्ध-तीव्र क्रोधसे प्रेरित होकर, किसीके मरने की भी परवाह न करके मनुष्य या पशु आदि को बाँधना, २. चमड़ी का छेदन करना, ३. जिसकी जितनी भार उठाने की शक्ति है, उससे अधिक भार लादना या काम लेना, ४. मर्म-स्थल पर प्रहार करना, और ५. जिसका भोजनपानी अपने अधिकार में है, उसे समय पर भोजन-पानी न देना, ये अहिंसा व्रत के पाँच अतिचार हैं। : २. सत्य-व्रत के अतिचार मिथ्योपदेशः सहसाऽभ्याख्यानं गुह्यभाषणम् । विश्वस्तमन्त्रभेदश्च, कूटलेखश्च सूनृते ।। ६१ ॥ · सत्य-व्रत के पाँच अतिचार यह हैं-१. दूसरों को दुःख उपजाने वाला पापजनक उपदेश देना, २. विचार किए बिना ही किसी पर दोषारोपण करना, ३. किसी की गुह्य बात जानकर प्रकट कर देना, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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