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________________ योग-शासत्र तपाये हुए लोहे के गोले को कहीं पर भी रखने से जीवों की हिंसा होती है। उसी प्रकार मनुष्य के चलने-फिरने से त्रस-चलते हुए और स्थावर-- स्थिर जीवों की हिंसा होती रहती है। किन्तु, इस व्रत के कारण आना-जाना मर्यादित हो जाता है, अतः जीवों का विनाश कम हो जाता है । इसीलिये यह व्रत प्रत्येक गृहस्थ के लिए धारण करने योग्य है। दिग्-व्रत से लोभ की निवृत्ति जगदाक्रममाणस्य प्रसरल्लोभवारिधः । स्खलनं विदधे तेन येन दिग्विरतिः कृता ॥ ३ ॥ जिस मनुष्य ने दिग्-व्रत अंगीकार कर लिया है, उसने जगत् पर आक्रमण करने के लिये अभिवृद्ध लोभ रूपी समुद्र को आगे बढ़ने से रोक दिया है। इस व्रत को धारण करने के पश्चात् मनुष्य लोभ के कारण दूर-दूर देशों में अधिकाधिक व्यापार करने के लिये जाने से रुक जाता है और परिणाम स्वरूप लोभ पर अंकुश लग जाता है । भोगोपभोग-व्रत भोगोपभोगयोः संख्याशक्त्यायत्र विधीयते । भोगोपभोगमानं तद् द्वतीयीकं गुणवतम् ॥ ४ ॥ शक्ति के अनुसार जिस व्रत में भोगोपभोग के योग्य पदार्थों की संख्या का नियम किया जाता है, वह भोगोपभोग-परिमाण नामक दूसरा गुणव्रत कहलाता है। भोगोपभोग की व्याख्या सकृदेव भुज्यते यः स भोगोऽन्नस्रगादिकः । पुनः पुनः पुनर्भोग्य उपभोगोऽङ्गनादिकः ।। ५॥ . जो वस्तु एक बार भोग के काम में आती है, उसे भोग कहते हैं और जो वस्तु बार-बार उपभोग में ली जाती है, वह उपभोग कहलाती Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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