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________________ ५० योग-शास्त्र सत्यवादी की प्रशंसा ज्ञान-चारित्रयोर्मूलं, सत्यमेव वदन्ति ये। धात्री पवित्रीक्रियते, तेषां चरण-रेणुभिः ॥६३॥ जो सत्पुरुष ज्ञान और चारित्र के कारणभूत सत्य वचन ही बोलते हैं, उनके चरणों की रज पृथ्वी को प्रावन बनाती है। . सत्यवादी का प्रभाव अलीकं ये न भाषन्ते, सत्यव्रतमहाधनाः । नापराद्ध मलं तेभ्यो - भूतप्रेतोरगादयः ॥६४॥ सत्यव्रत रूप महाधन से युक्त महापुरुष मिथ्या भाषण नहीं करते . हैं । अतः भूत, प्रेत, सर्प, सिंह, व्याघ्र आदि उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते हैं। टिप्पण-सत्य के प्रचण्ड प्रभाव से भूत-प्रेत आदि भी प्रभावित हो जाते हैं। सत्य के सामने उनकी भी नहीं चलती । अदत्तादान का फल दौर्भाग्यं प्रेष्यतां दास्यमङ्गच्छेदं दरिद्रताम् । अदत्तात्तफलं ज्ञात्वा, स्थूलस्तेयं विवर्जयेत् ॥६५।। अदत्तादान के अनेक फल हैं। जैसे-अदत्तादान करने वाला आगे चलकर अभागा होता है, उसे दूसरों की गुलामी करनी पड़ती है, दास होना पड़ता है, उसके अंगोपांगों का छेदन किया जाता है और वह अतीव दरिद्र होता है । इन फलों को जानकर श्रावक स्थूल अदत्तादान का त्याग करे। टिप्पण—जिस वस्तु का जो न्यायतः स्वामी है, उसके द्वारा दी हुई वस्तु को लेना दत्तादान कहलाता है और उसके बिना दिए उसकी वस्तु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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