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________________ योग- शास्त्र म्रियस्वेत्युच्यमानोऽपि देहो भवति दुखितः । मार्यमाणः प्रहरणैर्दारुणैः स. कथं भवेत् ॥ २६ ॥ वन में निवास करने वाले, किसी का कुछ अपराध न करने वाले, हवा-पानी और घास खाकर जीवन निर्वाह करने वाले मृगों की घात `करने वाला मांसार्थी पुरुष कुत्ते से किस बात में बड़ा है ? वस्तुतः उसमें और कुत्ते में कोई अन्तर नहीं है । अपना अंग विदारण करने पर जिसे पीड़ा का वही मनुष्य तीखे शस्त्रों से निरपराध प्राणियों दूब की नोंक से भी अनुभव होता है । अरे ! का वध कैसे करता है ? 1 क्रूरकर्मी लोग अपनी क्षणिक तृप्ति के लिए दूसरे प्राणी के सम्पूर्ण जीवन को समाप्त कर देते हैं । ''तुम मर जाओ', ऐसा कहने पर भी मनुष्य को दुःख का अनुभव होता है । ऐसी स्थिति में भयानक शस्त्रों से हत्या करने पर उस बेचारे प्राणी की हालत कैसी होती होगी ? हिसा का फल श्रूयते प्राणिघातेन, सुभूमो ब्रह्मदत्तश्च, सप्तमं आगम में प्रसिद्ध है कि जीव हिंसा के सुभूम और ब्रह्मदत्त चक्रवर्त्ती सातवें नरक के हिंसा की निन्दा रौद्रध्यानपरायणौ । Jain Education International नरकं गतौ । २७ ।। द्वारा रौद्रध्यान में तत्पर प्रतिथि बने ! कुणिर्वरं वरं पंगुरशरीरी वरं पुमान् । अपि सम्पूर्णसर्वाङ्गो, न तु हिंसापरायणः ॥ २८ ॥ हिंसा से विरक्त लूला-लंगड़ा एवं हाथों से रहित तथा कोढ़ आदि रोग से युक्त व्यक्ति भी श्रेष्ठ है । परन्तु, हिंसा करने वाला सर्वाङ्ग सम्पन्न होकर भी श्रेष्ठ नहीं है । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004234
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSamdarshimuni, Mahasati Umrav Kunvar, Shobhachad Bharilla
PublisherRushabhchandra Johari
Publication Year1963
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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