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________________ ५८] प्रथम प्रकाश अतः एव आचार्य हेमचन्द्र इस योग के क्रम में यम नियम को प्राथमिकता देते हुए कहते हैं: अहिंसा सूनृतास्तेय ब्रह्मा किंचनता यमाः ॥ नियमाः शौच संतोषौ, स्वाध्याय तपसी अपि । देवता प्रणिधानं च करणं पुनरासनं ॥ प्राणायामः प्राणयामः, श्वास प्रश्वास रोधनं । प्रत्याहारस्त्वद्रियाणां विषयेभ्यः समाहृति ॥ धारणा तु क्वचिद् ध्येये, चिन्तस्य स्थिर बंधनम् । ध्यानं तु विषये तस्मिन्नेक प्रत्यय संततिः ॥ समाधिस्तु तदेवार्थ मात्राभासन रूपकम् । एवं योगो यमागैरष्टभिः सम्मतोऽष्टधा ॥ अर्थात् - योग के ८ अंग हैं १. यम - अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह । २. नियम - शौच, संतोष, स्वाध्याय, तप, देवतानमन । ३. करण - आसन आदि करना ( व्यायामादि) । प्राणायाम - श्वास को लेना, रोकना तथा छोड़ना । ५. प्रत्याहार - इंद्रियों को स्व स्व विषयों से हटाना । ४. - ६. धारणा - किसी एक ध्येय में चित्त को स्थिर करना । ध्यान - उसी ध्येय विषय में एकलय ( तन्मय) हो ७. जाना । ८. समाधि - उसी एक मात्र ध्येय का आभास ( अनुभव ) होना । योग के ये आठों ही अंग क्रमशः ही प्राप्त होते हैं । इन में से अन्तिम चार अंग साधना की मनोभूमि पर प्रकट होते हैं 9 परमात्मा या आत्मा में एकलय हो जाने से पहले बाह्य पदार्थों से मन (इंद्रियों) को हटाना आवश्यक है, अन्यथा ध्यान से विचलित होते हुए देर न लगेगी । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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