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________________ २६४] बह्यचर्य ब्राह्मी चंदन बालिका भगवती, राजीमती द्रौपदी, कौशल्या च मृगावती च सुलसा सीता सुभद्रा शिवा । कुंती शीलवती नलस्य दयिता चला प्रभावत्यपि, पद्मावत्यपि सुन्दरी दिनमुखे, कुर्वन्तु वो मंगलम् ॥ इन में से बहुत सो सतियों ने दीक्षा नहीं ली तथापि उन्हें सती (साध्वी) कहा गया। यह सब ब्रह्मचर्य को ही महिमा है। सतियों के प्रभाव से कई असत् व्यक्ति भी तर जाते हैं। सतियों का सतीत्व ही दुर्जनों की बुद्धि को मोड़ देता है । सती के सतीत्व पर हो संसार स्थिर है । कुलटाओं तथा दुर्जनों के आधार पर कभी भी आकाश तथा पृथ्वो स्थिर नही रह सकते । यह पथ्वी, यह नक्षत्र, तारे, ये सूर्य, चन्द्र सतियों के सतीत्व तथा सत लोगों के सत्त्व के कारण ही स्थिर हैं । अतः सती के सतीत्व को समझने की आवश्यकता है। कभी भी सती के सतीत्व को कुदृष्टि से मत देखो। सतीत्व की मशाल सैंकड़ों हजारों को जलाने की क्षमता रखती है । द्रौपदी का सतीत्व ही था कि चीरहरण के समय असहाय होने पर भी उस का चीरहरण न हो सका तथा दुर्योधन एवं दुःशासन जैसे दुर्द्धर्ष योद्धा भूमितल पर लप्त हो गए। द्रौपदी को जंघा पर बिठाते-बिठाते वे स्वयं ही रसातल तक पहुंच गए। पांडवों के साथ ठगी करते-करते वे अपने वंश को ही समाप्त कर बैठे। द्रौपदी का चीरहरण तथा सीतापहरण तो सतयुग की दुर्घटनाएं हैं । इस कलियुग में तो दुर्योधन या रावण को बुरा कहना भी पाप है । बुरे को बुरा वह कहे-जो स्वयं बुरा न हो। वर्तमान में भौतिकवाद ने तो प्रायः समस्त मानव-जाति को ही विचारों से दूषित कर दिया है। जब तक नहीं परखा, तभी तक मानव सज्जन है । परखने के पश्चात् वही दुर्जनों का सरदार नज़र आता है । सादगी से रहने वाले आभ्यंतर रूप से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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