SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६४] अहिंसा यदि आप सामाजिक रूप से विचार करें तो सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण आप उसकी कुछ सहायता कर सकते हैं अथव यह सोच कर कि कभी मुझे भी आवश्यकता पड़ सकती है, आप उस की सहायता करने को तैयार हो जाते हैं । यदि आप आर्थिक रूप से विचार करें तो पड़ोसी को कुछ इनाम प्राप्त करने के लिए भी सहायता कर सकते हैं । यदि आप यह सोच कर कि - यदि मैंने पड़ोसी को बचाया तथा चोर के साथ युद्ध किया तो ये चोर मेरे घर पर भी चोरी करने आ सकते हैं । सहायता न को तो यह आप का भय का दृष्टिकोण है। "इस की रक्षा करते-करते यदि चोर मर गया तो मैं कहीं दण्डित न हो जाऊं यह आप का स्वरक्षा का दृष्टि कोण है । • आप का धार्मिक चिन्तन आप को कहेगा कि पड़ोसी को बचाना तो आवश्यक है, परन्तु अनावश्यक हस्तक्षेप मैं क्यों करूं ? तो यहां सामाजिक दायित्व आप के ऊपर आ जाता है, प्रतिष्ठा का प्रश्न भी हो जाता है कि यदि मैंने रक्षा न की तो मेरी 'कायर' के रूप में अप्रतिष्ठा हो जाएगी । "यदि मैंने पड़ौसी की मदद न की तो ठीक न दिखेगा ?" कभी यह पड़ौसी मुझ पर व्यंग्य ही कस देगा तो मुंह नीचा करना पड़ेगा | यह आप का व्यावहारिक दृष्टिकोण है । "यह व्यक्ति बहुत धनाढ्य है इसकी मन्त्रियों तक पहुंच (Approach) है, अतः इस को बचाना ही चाहिए । सम्भव है कि कभी इस के द्वारा कोई व्यापारादि में या दंडादि में लाभ हो जाए। यह आप का राजनैतिक दृष्टि कोण है । इस प्रकार गृहस्थ की परिस्थितियां अनेक प्रकार की हो सकती हैं। गृहस्थ का धर्म वहां कुछ भी व्यवस्था दे परन्तु गृहस्थ वहां पर धर्म को नहीं, परिस्थितियों को महत्ता देगा | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy