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________________ योग शास्त्र [88 तथा मच्छीमार साधु को देख कर भी श्रद्धा भ्रष्ट न हुआ। उसके मुख से यही उच्चारण हुआ, कि महावीर के सभी साधु श्रेष्ठ हैं । इस अकेले में दूषण होने से सभी दोषपात्र परिगणित नहीं किए जा सकते । वर्तमान में कोई श्रावक किसी साधु का कोई दूषण देख ले, तो उस दूषण के सुधार का प्रयत्न न करके वह उस साधु की निंदा करेगा, साधु संस्था का उपहास उड़ाएगा, समाज में साधु की उस कमी का डिडिमघोष करेगा। एक शिथिल साधु को देख कर साधु मात्र के प्रति अनास्थावान् हो जाएगा तथा झट कह देगा, कि सभी साधु ऐसे ही शिथिल हैं । अतः श्रद्धा हो तो अटूट हो । ___सम्यक् दृष्टि को राग द्वेष बहुत कम होता है। वह कभी भी छोटी-छोटी बातों को लेकर कलह अथवा क्लेश नहीं करता। 'शम' अर्थात् आत्म शांति उस का आत्म धन होता है । वह कभी भी किसी भी परिस्थिति में उस का हरण नहीं होने देता। गुणवान को देख कर वह प्रमोद भावना से श्रद्धावनत हो जाता है। पंचम लक्षण शम-सम्यग् दृष्टि राग द्वष के वातावरण से सदैव दूर रहता है । पारिवारिक क्लेश, परिस्थिति जन्य हो सकता है, परन्तु अद्यकाल में धार्मिक स्थान भी जब राग द्वेष के अभिवर्धक हो जाते हैं, तो मुख मण्डल म्लान हो जाता है । पारिवारिक तथा सामाजिक क्लेश को धार्मिक स्थानों में ला कर धर्म को बदनाम किया जाता है। ऐसा कार्य करने वाला व्यक्ति क्या सम्यग्दृष्टि कहलाने का अधिकारी हो सकता है ? कदापि नहीं। सम्यग्दष्टि व्यक्ति, क्रोध, मान, माया, लोभ आदि की वृद्धि के स्थान का दूर से ही त्याग कर देता है । वह सदैव समता के भाव में रमण करता है । वह क्रिया, संप्रदाय या मतभेद को लेकर आत्म शांति को भंग नहीं होने देता है । संप्रदायवादी का सम्यग्दर्शन भी संदिग्ध होता है। किसी भी परिस्थिति में, किसी भी समय, किसी भी व्यक्ति के अपराधी होने पर, वह व्याकुल न होकर शांत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004233
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashobhadravijay
PublisherVijayvallabh Mission
Publication Year
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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