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________________ (१) लंका सुंदरी के साथ हनुमान का युद्ध आप कौन है ? पिता के मृत्यु के कारण मैं व्यर्थ ही कुपित हुई। मुझे एक मुनिराज ने कहा था कि जो तुम्हारे पिता को मारेगा, वह ही तुम्हारा पति होगा। अतः हे नाथ ! मेरे भाग्य से आप मुझे मिले हैं।" हनुमान ने विनयपूर्वक उसके साथ गांधर्वविवाह किया। इतने में सूर्यास्त हुआ। हनुमानजी लंका की ओर चल दिए। लंका के इर्दगिर्द जो संरक्षक किला बना था, उसे हनुमान ने मिट्टी के पात्र की भाँति एक ही क्षण में तोड दिया। किले के टूटने की आवाज से किले के रक्षक वज्रमुख ने सक्रोध हनुमानजी पर आक्रमण किया। हनुमान ने एक क्षण में उसे मार दिया। रक्षक वजमुख की कन्या लंकासुंदरी अपने पिता के मृत्यु के कारण अत्यंत कुपित हुई। उसने भी हनुमान पर आक्रमण किया। उसने हनुमानजी के शरीर पर बार-बार गदाप्रहार किए। हनुमान ने अपने गदाप्रहार से उसके शस्त्रों का चूर्ण बना दिया। अचानक उस राक्षसकन्या के क्रोध का स्थान आश्चर्य एवं लज्जा ने लिया। वह बोली, "हे वीर! (२) बिभीषण के महल में हनुमान प्रातः उन्होंने लंका में प्रवेश किया। वे बिभीषण के प्रासाद गए । विभीषण ने उनका आदरसत्कार किया व आगमन का कारण पूछा। तब हनुमान ने उनसे कहा, "आपके ज्येष्ठ भ्राताने सती सीता 106009 400ODCY ARipapadGO-OPE LEADEEEEEEE anAAAAAA कएछछछा loan Edupligunguinomy & Private Use ON
SR No.004226
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year2002
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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