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________________ 60 रामचंद्रजी ने कहा, "महाबलशाली हनुमान के लिये क्या असंभव है ? किंतु अब आप लंका जाकर केवल सीता की शोध कीजिए । सीता के मिलते ही मेरी यह मुद्रिका उन्हें देकर कहिए कि, हे भद्रे ! राम आपकी विरहव्यथा से पीडित है, हे तन्वंगी ! राम केवल आपका चिंतन कर रहे हैं। आत्मा क्या अपने आवास देह से पृथक् रह सकती है ? तो राम भी आपके बिना कैसे जी सकते हैं? हे चारुशीले ! मेरा वियोग असह्य होने के कारण कहीं तुम देहत्याग तो नहीं करोगी? बस कुछ समय के लिए स्वयं पर संयम रखिये । शीघ्र ही लक्ष्मण लंका आयेंगे व रावण का हनन कर आपको मुक्त कराएँगे। हे कपिवर ! मुझे विश्वास है की आप, मेरा यह काम करेंगे ही, किंतु सीताजी के संदेश के साथ साथ यदि आप उनका चूडामणि ले आएंगे, तो मेरी विरहाग्नि कुछ शांत हो जाएगा।" हनुमानजी ने कहा, जब तक मैं पुनः लौटकर न आऊँ, आप यहीं रहिएगा।" फिर राम को प्रणाम कर हनुमानजी ने लंका की दिशा में गमन किया। पथ में हनुमान के मातामह महेन्द्र राजा की महेंद्रनगरी आई। हनुमानजी के मन में विचार आया "इन्होंने मेरी निर्दोष माता को ॐदेशनिकाला देकर अन्याय किया था। आज मैं उस अन्याय का प्रतिशोध क्यों न लूँ ?" अतः हनुमानजी ने अपने मातामह से एवं मातुल प्रसन्नकीर्ति के साथ तुमुल युद्ध किया व उन्हें पराजित कर राम के पास भेजा। इसके पश्चात् हनुमान दधिमुख नामक द्वीप में पधारे। वहाँ दो मुनि कायोत्सर्ग ध्यान में स्थिर खड़े थे। उनके समीप निर्दोष अंगवाली एवं विद्यासाधन में तत्पर तीन कुमारिकाएँध्यानमग्न थी। वहाँ अकस्मात् द्वीप में दावानल प्रगट हुआ। उन पाँच तपस्वी जीवों के लिए यह दावानल भयंकर सिद्ध हो सकता था, किंतु हनुमान ने अपने विद्या के माध्यम से समुद्रजल लाकर दावानल शांत किया । उसी समय उन कन्याओं को विद्या सिद्ध हुई। हनुमान ने उन कन्याओं के पिता गंधर्वराज नामक राजा को सैन्य समेत रामचंद्रजी के पास भेजा। JalnEdiशनिकाला का कारण जानने पढिए "एक थी राजकुमारी" For Personal & Private Use Only L A Pary.orgot
SR No.004226
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year2002
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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