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________________ ऐसा बोलते बोलते रावण, सीताजी के पदयुगलों पर नतमस्तक हुआ। किंतु सती सीता के लिए तो परपुरुष का स्पर्श भी विषसमान था, अतः उन्होंने अपने पैर हटा लिये व क्रोधावेश में बोली, “हे दुष्ट ! तू परस्त्री का अभिलाषी है। तुझ जैसे लंपट की मृत्यु निश्चित है।” लंका की सीमा पर अनेक सारण मंत्री एवं अन्य सामंत राक्षसराजा रावण का स्वागत करने आये थे। रावण के लंकाप्रवेश के उपलक्ष्य में एक महोत्सव मनाया गया। साहसी रावण ने उत्साहपूर्वक लंकाप्रवेश किया। उसी समय सीता ने अभिग्रह किया "जब तक राम एवं लक्ष्मण के कुशल समाचार प्राप्त न हो, तब तक मैं अन्न-पान नहीं करूंगी।" लंका की पूर्व दिशा में देवरमण नामक वाटिका थी। उस वाटिका में एक रक्त अशोक वृक्ष के तले त्रिजटा एवं अन्य रक्षकों को सीता के निगरानी के लिए नियुक्त कर रावण राजप्रासाद में गया। इधर जब राम अकेले ही लक्ष्मण की सहायता के लिए गए, तब लक्ष्मण ने आश्चर्य से उन्हें पूछा, "वहाँ भाभीश्री को अकेला छोड़कर आप यहाँ क्यों आये हैं?" राम ने कहा, “प्रिय अनु ! तुम्हारे द्वारा किये गए सिंहनाद को सुनते ही मुझे ज्ञात हुआ कि तुम संकट में फँसे हो, अतः तुम्हारी सहायता के लिए मैं यहाँ आया हूँ ।" तब लक्ष्मण ने कहा, "भ्राताश्री ! मैंने सिंहनाद किया ही नहीं, किंतु आपने नाद सुना.... इसका अर्थ है हमारे साथ किसीने छलकपट किया है... आप शीघ्र भाभी के पास जाईये.... मैं अभी शत्रु को पराजित करके लौटता हूँ।” राम त्वरित स्वस्थान पर पहुँचे। किंतु जानकी तो वहाँ थी ही नहीं । Pendly via A राम ने घायल जटायु को नमस्कार मंत्र सुनाया दुःखावेग से राम, मूर्च्छित होकर धरा पर गिर पडे। होश में आने पर उन्होंने चारों दिशाओं में दृष्टिक्षेप किया, तब उन्हें मरणोन्मुख जटायु पक्षी दिखाई दिया। परोपकारी राम ने उसे नमस्कार महामंत्र सुनाया। समाधिपूर्वक मंत्र सुनकर जटायु ने अंतिम श्वास ली। नमस्कार महामंत्र के प्रभाव से मरणोपरांत जटायु का जीव देवलोक में गया। नवकार महामंत्र णमो अरिहंताणी णमो सिद्धाणी णमो आयरियाणी णमो उवज्झायाणी णमो लोए सव्वमाहूपी एसी पीच णामकारी सव्व पाव प्यणासणी मंगलापांच सव्वेसिं पदमी हवाइ मंगली ॥ For Personen & Private Use Only 53 wwww.jainelibrary.org
SR No.004226
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year2002
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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