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________________ दशरथ द्वारा भरत को राज्य देने का कथन यह सुनकर कैकेयी ने विचार किया 'मेरे पतिदेव ने दीक्षा ग्रहण का अडिग प्रण किया है। यदि वे दीक्षा लेते हैं, तो मैं राजरानी नहीं कहलाउँगी। फिर दशरथ ने राम एवं लक्ष्मण को बुलवाकर कहा, "कैकेयी के सारथ्य कौशल्य के कारण एक युद्ध में मेरी विजय हुई थी। तब प्रसन्न होकर मैंने कैकेयी को वरदान दिया था, जो उसने भविष्यकाल के लिए सुरक्षित रखा था। आज राजरानी कैकेयी चाहती है कि दीक्षा लेने के पूर्व, मैं अपना राज्य भरत को सौंपकर ऋणमुक्त बनें, ताकि दीक्षाले सकूँ। ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते हे राम! राज्य पर तुम्हारा अधिकार है - परंतु आज मैं तुम्हारे अधिकार का उल्लंघन करते हुए भरत को राज्य सौंप रहा हूँ।" यह तो ठीक, परंतु यदि भरत भी दीक्षा लेगा तो मेरा राजमाता का बिरुद भी नहीं रहेगा।' इस प्रकार मोहपाश में बद्ध कैकेयी ने दशरथ से कहा- "स्वामिन् ! महाराज ! विश्व में कुछ भी असंभव नहीं है, कदाचित् प्रकृति अपना मार्ग बदल सकती है, सूर्य अपनी गति बदल सकता है - परंतु यदि कुछ न बदलता हो, तो वह है सत्यवादी पुरुष का वचन ! आपको स्मरण होगा कि मेरे सारथ्य से प्रसन्न होकर आपने स्वयंवर के समय मुझे वरदान दिया था। UHUVIDHDBUALSURUVHURUHURUUUUBURUUURVEVENTS मैंने वह वरदान भविष्यकाल के लिए रखा था। आप मेरे ऋणी हैं । अतः आप दीक्षा ग्रहण करने के पूर्व मेरा ऋण अदा कर दीजिए। इसके पश्चात् ही आप दीक्षा ग्रहण कर सकते हैं, क्योंकि ऋणधारी व्यक्ति दीक्षा नहीं ले सकता !" AMOEOMARA दशरथ राजा ने कैकेयी को उत्तर देते हुए कहा, ''मुझे मेरे वचन का स्मरण है। दीक्षा निषेध के अलावा आप अन्य कुछ भी माँग सकती हैं।' कैकेयी ने कहा, "यदि आप दीक्षा ग्रहण करना चाहते हैं, तो अयोध्या का राज्य भरत को दीजिए।" कैकेयी की माँग स्वीकार करते दशरथ ने कहा "भरत सहर्ष मेरा राज्य ग्रहण कर सकता है।" DILIP.SON Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004226
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year2002
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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