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________________ 27 के लिए कोई प्रायश्चित्त भी नहीं इसलिये वह महापाप है। कहा गया है - क्रोधात् भवति संमोहः, संमोहात् स्मृतिविभ्रमः । स्मृतिभ्रंशात् बुद्धिनाशो, बुद्धिनाशात् प्रणश्यति ।। क्रोध से संमोह होता है, संमोह से स्मृति चलित होकर ध्वंस होती है, स्मृतिभ्रंश से बुद्धि का विनाश होता है और बुद्धिनाश के कारण सर्वनाश होता है। विवेकी आत्मा ऐसा प्रसंग आने पर विचार करती है, आत्महत्या सबसे बडा पातक है। हत्या भी पाप है किंतु उसके लिए प्रायश्चित्त है, जो आत्मा को विशुद्ध बनाता है। आत्महत्या राजा कदाचित् शांतिस्नात्र का जल मुझे भेजना भूल गए होंगे, तो मैं ही क्यों न किसी अन्य व्यक्ति को भिजवाकर जल मंगवाऊँ? परंतु पट्टरानी कौशल्या के मस्तिष्क पर उस समय अहंकार एवं आवेश ने आक्रमण किया था। अतः वे विवेकशक्ति को ठुकराकर आत्महत्या के लिए प्रेरित हो गई। अचानक दशरथ राजा वहाँ पहुँचे और अपनी पट्टरानी के गले में फाँसी का पाश देखकर भयभीत हो गए ! कौशल्या द्वारा दशरथ को उपालंभ । 000 किसी तरह समझा बुझाकर राजा दशरथ ने कौशल्या को नीचे उतरवाई और पुच्छा की, "किसने आपका घोर अपराध किया है जिसके कारण आप आत्महत्या करने के लिए विवश हो गई? कहीं मैं ही आपका अपराधी तो नहीं हैं ?" क्रोधावेश से कंपायमान कौशल्या बड़ी कठिनाई से केवल इतना ही बोल पायी - "अन्य सभी रानियों के आवास में शांतिस्नात्र का जल पहुंचाया... और मेरे यहाँ.......?" LESED ALL .. . PICIPAN Jain Education International oilewoni lesal1290 www.jainelibrary.org
SR No.004226
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year2002
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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