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________________ सूर्य ने पुनः पृथ्वी को पादाक्रांत किया। कहा गया है “कर्मन की गति न्यारी संतो कर्मन की गति न्यारी" अपने अशुभ कर्मो का उदय होते ही परमपराक्रमी सम्राट् दशरथ कार्पटिक वेश धारण कर वन-वन विचरने के लिए विवश हो गए थे और शुभ कर्मो का पुनः उदय होते ही राजवैभव समेत अयोध्या पधारे। 6 सीता का जन्म सीता का जन्म व विदेहा के पुत्र का अपहरण Jain Education International - 15 अयोध्या में कैकेयी ने शुभ स्वप्नों के सूचन पश्चात् एक पुत्र को जन्म दिया। भरत क्षेत्र के भूषणसमान इस पुत्र का नाम भरत रखा गया। रानी सुप्रभा ने एक बलशाली पुत्र को जन्म दिया। भविष्य में यह बालक अनगिनत शत्रुओं का हनन करेगा, यह जानकर उसका नाम शत्रुघ्न रखा गया। भामंडल का अपहरण PLIE For Personal & Private Use Only इस ओर जनकराजा भी पुनः मिथिला पधारे। कुछ समय पश्चात् उनकी महारानी विदेहा ने पुत्र एवं पुत्री रूप जुड़वाँ शिशुओं को जन्म दिया। पहले देवलोक में रहनेवाले पिंगल नामक देव को अवधिज्ञान से यह ज्ञात हुआ कि जो व्यक्ति पूर्वजन्म में उसका वैरी रह चुका था, आज महारानी विदेहा की गोद में पनप रहा है। उसने विचार किया अपने शत्रु की आत्मा मिथिला युवराज के चोले में विविध सुखों का आस्वाद करें, इसके पूर्व मैं ही क्यों न उसका अपहरण कर उसे मृत्यु को सौंप दूँ। इस दुर्विचार से ग्रस्त पिंगलदेव ने अदृश्य रूप से मिथिला आकर रानी विदेहा के नवजात पुत्र का अपहरण किया। उस बालक को वैताढ्य पर्वत की किसी शिला पर पटक कर हत्या करने का विचार पिंगलदेव ने किया था।.. परंतु कदाचित् उस बालक के पुण्यप्रभाव से कहिए या स्वयं देव के पुण्यप्रभाव से कहिए, उसने विचार किया कि, 'पूर्व भव की संयम साधना के फलस्वरूप मैंने देव का जन्म प्राप्त तो किया है, पर अब बालहत्या का पातक कर अपने लिए दुर्गति को क्यों निमंत्रित करूँ ?' इस शुभ विचार ने उसे बालहत्या करने से परावृत्त किया। उसने नवजात बालक को कुंडलादि आभूषणों से सुसज्ज किया और वैताढ्य पर्वत की दक्षिण श्रेणी के नंदन www.jainelibrary.org
SR No.004226
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year2002
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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