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________________ GD शुभ ध्यान में मरकर अनेक शुभगति में भ्रमण कर वह जंबुद्वीप के महाविदेह में अचल चक्रवर्ती की हरिणी नामकी पत्नी से प्रियदर्शन 'नामक पुत्र हुआ। वह बहुत ही धर्मात्मा था व बाल्यवय में ही दीक्षा ग्रहण करने का विचार कर रहा था । परन्तु यौवनावस्था प्राप्त होते ही पिता के आग्रह से तीन हजार कन्या के साथ उसकी शादी हो गई। प्रियदर्शन ने गृहस्थवास में भी चौसठ हजार वर्ष तक उत्कृष्ट तप किया। फिर मृत्यु पाकर वह ब्रह्मदेवलोक में देव बना। धनश्रेष्ठी भी संसार में परिभ्रमण करके पोतनपुर में अग्निमुख ब्राह्मण की पत्नी शकुना से मृदुमति नामक पुत्र हुआ । वि होने से पिता ने उसको घर से बाहर निकाल दिया। वह स्वच्छंदी बनकर भटकने लगा एवं जुआ आदि सभी कला में चतुर तथा ठग बन गया। जुआ खेलने में चतुर होने से वह किसी से भी पराजित नहीं होता। इससे वह बहुत ही धनवान बना । वसंत नाम की वेश्या के साथ कामवासना में धन खर्च करता वह जुआरी वेश्यागामी भी बन गया। जीवन की अंतिम अवस्था में खराब व्यसनों को छोड़कर उसने दीक्षा ली। मृत्यु पाकर वह ब्रह्म देवलोक Jain Education International में देव बना । वहाँ से च्यवन कर पूर्व भव के कपट से वह वैताढ्य गिरि पर भुवनालंकार नाम का हाथी बना। प्रियदर्शन का जीव ब्रह्म देवलोक से च्यवन कर भरत बना । भरत को देखकर हाथी को जातिस्मरण ज्ञान हुआ। इससे विवेक प्राप्त होने से रौद्र ध्यान को छोड़कर वह मदरहित बना । तालिका भुवनालंकार हाथी चन्द्रोदय राजा कुलंकर अनेक भव विनोद अनेक भव श्रेष्ठी पुत्र भव भ्रमण मृदुमति ब्रह्म देवलोक भुवनालंकार हाथी For Personal & Private Use Only _ भरत सूरोदय राजा श्रुतिरति अनेक भव रमण अनेक भव भूषण उच्चगति भ्रमण प्रियदर्शन ब्रह्म देवलोक भरत 119 www.jainelibrary.org
SR No.004226
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year2002
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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