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________________ परिशिष्ट २ चंद्रगति, भामंडल आदि के पूर्वभव. - पिंगल देव ने विदेहापुत्र भामंडल का अपहरण क्यों किया ? चंद्रगति राजा के साथ भामंडल का पूर्व भव में क्या संबंध था ? I भरत के क्षेत्रपुर में सागरदत्त की पत्नी रत्नप्रभा की कुक्षि से गुणधर और गुणवती का जन्म हुआ। परिशिष्ट ८ के अनुसार शादी किए बिना ही गुणवती मरकर हरिणी व गुणधर हरिण बना अनेक भवों के बाद हरिणी सरसा बनी। भरत क्षेत्र के दारुगांव में वसुभूति नामक ब्राह्मण की पत्नी अनुकोशा से हरिण का जीव अतिभूति नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसकी शादी सरसा नाम की कुमारी के साथ हुई। कयान नामक ब्राह्मण ने सरसा प्रति आसक्ति उत्पन्न होने से छल-कपट कर उसका अपहरण किया। काम वासना के अधीन मनुष्य ने अपने ब्राह्मण कुल की मर्यादा को छोड़कर निर्लज्ज बन ऐसा अपकृत्य कर दिया। उसकी शोध खोज के लिये पति अतिभूति जंगल में भटकता रहा व सास ससुर भी जंगल में खोज करने लगे। वहाँ वसुभूति और अनुकोशा को मुनि के दर्शन हुए। उनके पास धर्म सुनकर दोनों ने दीक्षा ग्रहण की। अनुकोशा, साध्वीजी कमलश्री की शिष्या बनी । दोनों मृत्यु पाकर लोकान्तिक देव मतान्तर से पहले देवलोक के देव व अनेक भव करके वसुभूति का जीव चंद्रगति नाम का राजा व अनुकोशा का जीव उनकी पत्नी पुष्पवती बनी। पुत्रवधू सरसा ने भी किसी साध्वीजी के पास धर्म को जान कर दीक्षा ली। स्वर्गवासी बनकर वह दूसरे देवलोक में देवी बनी। परंतु पति अतिभूति भयंकर आर्तध्यान में मरकर हंस बना। एक बार बाज पक्षी से घायल बना हुआ वह हंस, वृक्ष पर से किसी मुनि के पास गिर पड़ा। मुनि ने उसे नमस्कार महामंत्र सुनाया। उसके प्रभाव से वह १० हजार वर्ष आयुष्यवाला व्यंतर देव बना । वह मरकर विदग्धनगर में प्रकाशसिंह राजा की पत्नी प्रवरावती से कुण्डल मंडित नाम का पुत्र हुआ। चक्रपुर में चक्रध्वज राजा का धूमकेश नामक पुरोहित था । परस्त्री लंपट कयान अनेक भव भ्रमण करने के बाद उसकी पत्नी स्वाहा को पिंगल नामक पुत्र हुआ। राजा चक्रध्वज की पुत्री अतिसुन्दरी के साथ पिंगल एक गुरु के पास पढता था। पूर्व भव में सरसा के प्रति water intamational पिंगल देव कयान अनेक भव राग उत्पन्न हुआ था। कयान का शरीर बदल गया, मगर राग भाव के संस्कार आत्मा के साथ होने से वह अपनी सहाध्यायी राजपुत्री अतिसुंदरी का अपहरण करके विदग्ध नगर में चला गया। फर्क इतना ही था कि पूर्वभव में वह सरसा थी और इस भव में अतिसुंदरी। व्यक्ति बदल गया मगर राग-भाव के संस्कार न बदले। वह जंगल में घास, लकडी बेचकर अतिसुन्दरी के साथ जीवन निर्वाह करने लगा। एक दिन वहाँ पर कुंडल मंडित ने अतिसुंदरी को देखा। परस्पर स्नेह उत्पन्न होने से उसने पूर्वभव में अपनी पत्नी सरसा का अपहरणकर्ता कयान व वर्तमान में पिंगल के सान्निध्य में रही अतिसुन्दरी का अपहरण किया। पूर्व भव के पैर का अनुबन्ध इस प्रकार चला। पिता के डर से कुंडल मंडित, दुर्ग देश में झोंपडी बनाकर वहीं रहने लगा। पिंगल, पागल की तरह पृथ्वी पर घूमने लगा। एक दिन उसने आचार्य देवश्री गुप्तसूरीश्वरजी के पास में धर्म सुनकर दीक्षा ली व पिंगल ऋषि बने । कुंडलमंडित, दशरथ राजा की राज्य सीमाओं पर लुट मचाकर जंगल में घूमता था। एक बार राजा बालचंद्र ने उसे बांधकर दशरथ राजा के समक्ष लाया । धीरे धीरे क्रोध शान्त होने पर उसने उसे छोड दिया। जंगल में भटकते उसे मुनिचन्द्र मुनि मिले। उनसे धर्म श्रवण कर वह श्रावक बना। मृत्यु पश्चात वह मिथिला नगरी में रही जनक राजा की पत्नी विदेहा की कुक्षि में गर्भ के रूप उत्पन्न हुआ। दूसरी ओर सरसा, भव भ्रमण करती हुई श्रीभूति पुरोहित की पुत्री वेगवती बनी। सुदर्शन मुनि के ऊपर आरोप लगाने के बाद, वैराग्य भाव में दीक्षा लेकर वह विदेहा की कुक्षि में उत्पन्न हुई। जैसे ही विदेहा ने युगल को जन्म दिया, उसी समय पिंगल देव अविधिज्ञान से उसमें पूर्व भव के वैरी कुंडल मंडित के जीव को देखकर क्रोध से तमतमा उठा और उसका अपहरण कर दिया। यहाँ पर हमें यह भी कर्म की विचित्रता देखने मिलती है कि एक भव में अतिभूति पति व सरसा उसकी पत्नी थी वही अतिभूति का जीव भामंडल और सरसा का जीव उसकी बहिन सीता बनी। भामंडल गुणधर हरिण अतिभूति अनेक भव हंस व्यंतरदेव पिंगल ऋषि कुण्डल मण्डित पिंगल देव भामंडल तालिका सीता गुणवती हरिणी सरसा १२ रा देवलोक For Personal & Private Use Only वेगवती ५ वां देवलोक सीता चंद्रगति वसुभूति लोकान्तिक देव पहला देवलोक व अनेक भव चंद्रगति पुष्पवती अनुकोशा लोकान्तिक देव पहला देवलोक व अनेक भव पुष्पवती 113 www.jainelibrary.org
SR No.004226
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year2002
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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