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________________ 104 लव-कुश द्वारा दीक्षा की आज्ञा मांगना Jain Education International ))) 7014 innadada amy TIDE अपने काकाश्री का असमय मृत्यु देखकर संसार की अनित्यता से अत्यंत भयभीत होकर लव-कुश, रामचंद्रजी को प्रणाम करते हुए बोले, “मृत्यु तो सभी को कभी भी अकस्मात् आ सकता है। अतः मनुष्य को परलोकगमन के लिए सदैव तैयार रहना चाहिये। हे तात! आपके प्राणप्रिय अनुज व हमारे काकाश्री की असमय मृत्यु देखकर हमें तीव्र वैराग्य आया है। इस संसार के प्रति हमें तनिक भी आसक्ति नहीं है। अब हमें यहाँ रहना नहीं। आपश्री हमें अनुमति दीजिये" इस प्रकार अपने पिता से अनुमति लेकर अमृतघोष मुनि से दीक्षा प्राप्त की। कितना अटूट वैराग्य जगा, इन दो युवाओं के मनमें! घर से प्रिय काकाश्री का शव अभी अंत्येष्टि के लिये बाहर निकाला नहीं गया। घर में शोकाकुल वातावरण है। फिरभी उत्तम भावपूर्वक चारित्रग्रहण करने के लिए उन्होंने तनिक भी विलंब नहीं किया। दोनों युवा मुनिओं ने उत्तम आराधना के माध्यम से केवलज्ञान पाकर मोक्ष प्राप्त किया। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004226
Book TitleJain Ramayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year2002
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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