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________________ 83...कहीं सुलझा न जाए 22 रानी कुन्तला पूरे राज्य में हाहाकार मच गया। तहलका । कुन्तला रानी ने अपनी सौतों को जिनभक्ति वगैरह सिखाई थी। मगर वे कुन्तला से आगे बढ़ मच गया....चोरी....चोरी !! रानी | गई। कुन्तला के मन में ईर्ष्या उत्पन्न हुई कि मैंने ही सब को धर्म बताया था और ये सभी रानियाँ मुझसे भी लक्ष्मीवती की आँखें रो....रो कर सूज । धर्म में आगे निकल गयी ! अगर वे आगे बढ़ भी गयी, तो तेरे घर का क्या जाता हैं? वे करती तो धर्म की गयी। हाय ! मेरे परमात्मा को कौन उठा । क्रिया ही हैं न नहीं... वे करें उसके लिये मना नहीं, परंतु वे मेरे पीछे होनी चाहिये। अपनी पंक्ति को बड़ी ले गया? साध्वी जयश्री को इस बात का । करने के बदले. दसरों की पंक्ति को मिटा देना, ऐसी ईर्ष्यावृत्ति की आलोचना न लेने के कारण कुन्तला को राज मिल गया। उन्होंने कनकोदरी को । । दूसरे भव में कुत्ती का जन्म मिला। इस जन्म में और करना भी क्या ? सिर्फ भोंकते ही रहना... समझा-बुझा कर परमात्मा की पुनः । स्थापना तो करवा दी। लेकिन किसी की ये पंक्तियाँ कितनी सुंदर हैं, कुत्ते की ईर्ष्यावृत्ति के ऊपर... पूर्ण चंद्रबिंब आकाश में से कनकोदरी ने इस कत्य की विधिवत । चांदनी बरसाता हुआ उगा और पूरी नगरी धवल बन गयी। परंतु उसके इस प्रकाश से नगरी के सारे कुर आलोचना नहीं ली। इसलिये उसे इस | जाग उठे और भोंकने लगे। लेकिन कुत्ता कितना भी भोंके और कितनी बार भी भोंके अमीछींटा बरसात कृत्य का भयंकर परिणाम भुगतना पड़ा । हुई चांदनी क्यों प्रकाश देना बंद करे ? उसको प्रकाश देता हुआ चंद्रबिम्ब जैसे-जैसे देखे, वैसे-वैसे कुत्त अंजना सुंदरी के भव में । अंजना सुंदरी । को ज्यादा से ज्यादा चानक चढ़ती । अर्थात् कुत्ते सारे भोंकने ही लगे... भों!... भों!... यह तो चला ! को पति-वियोग में बाईस वर्ष तक । लेकिन उसके भोंकने से तारे टूट कर गिरने वाले नहीं। तारों का काम तारा करता है और कुत्ते का काम रो...रो...कर व्यतीत करने पड़े। पूर्व भव । कुत्ता करे। तारा कभी भी फ़रियाद नहीं करता, अरे ! तुझे भोंकना हो, तो भोंक ना... हमें देख-देखकर में वसन्ततिलका ने उसके इस अपकृत्य । क्यों भोंकता है। तारे तो टिमटिमाने ही वाले हैं और कुत्ते तो भोंकते ही रहेंगे। यह ईर्ष्यावृत्ति उसके खून में का अनुमोदन किया था, अतः उसे भी । ही होती है। अंजना के साथ दुःख सहने पड़े। यदि । हम किये गये पापों की आलोचना नहीं । दूसरे ईर्ष्या करे, तो क्या अपने को भी ईर्ष्या ही करनी ? नहीं कभी भी नहीं, अपने को तो चांदनी करते हैं और प्रायश्चित लेकर शद्ध नहीं । की तरह प्रसन्न रहना चाहिये। दूसरे के पास तीन बंगले हैं, चार मारूती हैं और अपने को तो एक के भी बनते हैं, तो उसका अति भयंकर । फाँफे पड़ रहे हैं, तो क्या ईर्ष्या करनी? नहीं, कदापि नहीं। दूसरे रोज बदाम का सिरा खाते हो और आने परिणाम भुगतना पड़ता है, जैसे अंजना । को पेट की भूख मिटाने के लिये रोटी भी मुश्किल से मिलती हो। तब क्या ओरों की ईर्ष्या करनी चाहिए? सन्दरी की जिन्दगी के वे वियोग भरे वर्ष । नहीं... ध्यान रखना, अगर ऐसी छोटी-सी भी ईर्ष्या हो गयी हो, तो गुरु भगवंत के पास आलोचना ना आँसू की कहानी बन कर रह गये। मत भूलना। नहीं तो कुन्तला से भी बुरा हाल अपना होगा और फिर कुत्ते बनकर करना भी क्या ? नहीं Jain Education International www.jainelibrary.org सामायिक या नहीं पौषध, सिर्फ भोंकते ही रहना... भों...! भों...! भों...!
SR No.004221
Book TitlePaschattap
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunratnasuri
PublisherJingun Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C020
File Size18 MB
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