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________________ 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 9. अभ्यास (घ) खंडयं छन्द लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में तेरह मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में रगण ( SIS) होता है। दोहा छन्द लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । पहले व तीसरे चरण में तेरह-तेरह मात्राएँ होती हैं और दूसरे व चौथे चरण में ग्यारह - ग्यारह मात्राएँ होती हैं। सिंहावलोक छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में सगण ( 115 ) होता है । दीपक छन्द लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में दस मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में लघु (1) होता है। पादाकुलक छन्द लक्षण- इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं और सर्वत्र लघु होता है । आनन्द छन्द लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में पाँच मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में लघु (1) आता है। मदनविलास छन्द लक्षण - इसमें चार चरण होते हैं (चतुष्पदी) । प्रत्येक चरण में आठ मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में गुरु - गुरु (SS) आता है। चन्द्रलेखा छन्द लक्षण - इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी ) । प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। अमरपुरसुन्दरी छन्द लक्षण - इसमें दो चरण होते हैं (द्विपदी ) । प्रत्येक चरण में दस मात्राएँ होती हैं तथा चरण के अन्त में लघु (1) व गुरु (s) होता है। अपभ्रंश-व्याकरण एवं छंद - अलंकार अभ्यास उत्तर पुस्तक Jain Education International For Personal & Private Use Only 51 www.jainelibrary.org
SR No.004212
Book TitleApbhramsa Vyakaran evam Chand Alankar Abhyas Uttar Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2012
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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