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________________ पुरुष और प्रकृति में भेद मोक्ष की ओर ले जाता है।289 सांख्यकारिका का कथन है कि यह ज्ञान कि 'मैं नहीं हूँ', 'मेरा कुछ नहीं है' और 'अहंकार का अस्तित्व नहीं है' मोक्ष की ओर ले जाता है।290 पूर्वमीमांसा के अनुसार काम्य और प्रतिषिद्ध कर्मों को त्यागना और नित्य और नैमित्तिक कर्मों को करना संसार के दुःखों को टालने के लिए आवश्यक है। किन्तु मीमांसा दर्शन का प्रभाकर मत मोक्ष के लिए ज्ञान की आवश्यकता को स्वीकार करता है।291 शंकराचार्य के अनुसार ब्रह्म का स्वयं से तादात्म्य का सच्चा ज्ञान मोक्ष की प्राप्ति कराता है। आत्मा वास्तव में ब्रह्म है किन्तु अविद्या के कारण वह अपनी गरिमा को भूला हुआ है। 'मैं ब्रह्म हूँ'- इस ज्ञान से गरिमा पुनः प्राप्त की जा सकती है। बौद्ध दर्शन के अनुसार चार आर्यसत्यों का ज्ञान निर्वाण-प्राप्ति के लिए आवश्यक है।292 उचित ज्ञान को बौद्धिक ज्ञान से गड्डमड्ड नहीं करना चाहिए, उसको अन्तर्दृष्ट्यात्मक ज्ञान ही समझना चाहिए। न्यायवैशेषिक और वेदान्त अन्तर्दृष्ट्यात्मक ज्ञान प्राप्त करने के लिए तीन विधियाँ बताते हैं।293 (1) शास्त्रों का अध्ययन और योग्य गुरु का निर्देशन (श्रवण), (2) जो कुछ पढ़ा गया है और पढ़ाया गया है उसका चिन्तन (मनन) और (3) आत्मा के वास्तविक स्वरूप का ध्यान (निदिध्यासन)। सत्य को जानने के लिए न्याय-वैशेषिक व सांख्ययोग अष्टांग मार्ग को उल्लिखित करते हैं। पूर्वमीमांसा भी उसको 289. · योगसूत्र और भाष्य और भोजवृत्ति, 2/25, 26 290. सांख्यकारिका, 64 291. प्रकरण पञ्जिका, 154-157 292. Indian Philosophy, 1.P.Vol.II. P. 418 293. न्यायसूत्र-भाष्य-वर्तिका, 4/2/38; 47, 49 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त (51) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004208
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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