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________________ दसवाँ, गीता के अनुसार रहस्यवादी जो आत्मा में आनन्द लेता है और जो आत्मा में संतुष्ट है उसके द्वारा अब कुछ भी प्राप्त करने योग्य नहीं है। वह जगत की वस्तुओं को अपने लिए नहीं चाहता है।266 जैनदर्शन के अनुसार मुनि ने वह कर लिया है जो उसे ध्यान के द्वारा किया जाना चाहिये था।267 विभिन्न दर्शनों में मोक्ष की धारणा हम न्याय-वैशेषिक, सांख्य-योग, पूर्वमीमांसा, शंकर-वेदान्त और प्रारंभिक बौद्ध दर्शन के मोक्ष की धारणाओं पर विचार करेंगे। यद्यपि इन दर्शनों में प्रारंभिक पूर्वमीमांसा के सिवाय सभी दर्शन मोक्ष को मानव-जीवन का उच्चतम आदर्श मानते हैं किन्तु इनके स्वरूप के वर्णन में अत्यधिक भेद है। कुछ दर्शन इसका निषेधात्मक रूप से निरूपण करते हैं अर्थात् दुःख से मुक्ति या संसार के जाल से छूटना। जब कि दूसरे दर्शन इसको सकारात्मक रूप से समझाते हैं अर्थात् आनन्द की प्राप्ति। पूर्ववर्ती दृष्टि के समर्थक हैं वैशेषिक, प्रारंभिक नैयायिक, सांख्य-योग और उत्तरकालीन मीमांसकों में से कुछ और प्रारंभिक बौद्ध दर्शन। परवर्ती दृष्टिकोण में जैनदर्शन, उत्तरकालीन नैयायिक व मीमांसक और अद्वैत वेदान्त सम्मिलित हैं। ये दर्शन न केवल मोक्ष के स्वरूप में भिन्न होते हैं किन्तु वे इस लोक में या परलोक में मोक्ष की प्राप्ति की संभावना में भी भिन्न हैं। पूर्ववर्ती दृष्टि जीवनमुक्ति कहलाती है जब कि परवर्ती दृष्टि विदेहमुक्ति कहलाती है। जैनदर्शन, अद्वैत वेदान्त, सांख्य-योग और बौद्ध दर्शन दोनों दृष्टियों को स्वीकार करते हैं जब कि न्यायवैशेषिक और मीमांसा केवल परवर्ती दृष्टि को ही मानते हैं। 266. भगवद्गीता, 3/17, 18 श्वेताश्वेतरोपनिषद्, 2/2/14 267. स्वयंभूस्तोत्र, 110 Ethical Doctrines in Jainism जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त (45) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004208
Book TitleJain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherJain Vidya Samsthan
Publication Year2011
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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