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________________ सर्वनाम शब्दों के रूपों को रेखांकित करके जो ज्ञान कराने का प्रयास किया है वह सभी वर्गों के समझने योग्य है। हम आगम के सूत्रों तथा संस्कृत नाटकों की प्राकृत समझने में तभी सफल हो सकते हैं जब इस तरह की 'प्राकृत - हिन्दी- व्याकरण' अपने हाथ में हो। पृ. 74 से 163 तक के रूप प्राकृत के प्रयोगों को समझने में सहायक होंगे। शब्द कोश का परिशिष्ट प्राकृत शब्द और अर्थ को प्रतिपादित करने वाला है। प्राकृत के प्रति रूचि इस तरह के व्याकरण से अवश्य जागृत होगी। लेखिका बधाई की पात्र हैं और मेरे लिए प्राकृत की नई दृष्टि देने वाले प्रो. कमलचन्द सोगाणी आदर्श गुरु हैं। उनका निर्देशन आगम साहित्य, उसका व्याख्या साहित्य एवं काव्य के साथ नाट्यशास्त्र के नियम में बद्ध नाटकों के प्राकृत अंशों के पढ़ने-पढ़ाने में रुचि उत्पन्न अवश्य ही करेगा। अध्यापक, विद्यार्थी आदि के अतिरिक्त साधुओं के सामायिक, प्रतिक्रमण, सूत्र ग्रन्थों और पाहुड़ पाठों के पाठ भी समझे जा सकेंगे। हमारे जैन श्रावक जैन श्रमणों के लिए इस तरह के व्याकरण शास्त्ररूप में भेंटकर उनका अनन्य उपकार कर सकेंगे। यह पुण्यार्जन का शुभ क्षण कर्मों की निर्जरा भी कर सकेगा। V Jain Education International Dr. Udai Chand Jain Ex. Associate Professor Deptt. of Jainology & Prakrit [CSSH] M.L. Sukhadia Univergity, UDAIPUR For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004205
Book TitlePrakrit Hindi Vyakaran Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2013
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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