SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 3
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सत्य के चश्मे के आरपार - आइये, पिछले ५०० वर्ष का इतिहास फिर से पढ़ें । - राजेन्द्र जोशी १९९७ का वर्ष बीत चला है। व्यक्ति पर, परिवार पर, समाज पर, राष्ट्र पर, विश्व पर; कितने ही घाव छोड़ता हुआ, समय की रेत का एक और कण फिसल रहा है । भविष्य आशा की लालिमा नहीं, भय की कालिमा की ओर संकेत करता है। हर व्यक्ति संदिग्ध मनोदशा में एक ही प्रश्न से जूझ रहा है - क्यों ऐसा हो रहा है ? इस प्रश्न की ऊंगली पकड़ कर जवाब के लिए इतिहास के पत्रों को एक एक कर पीछे की तरफ उलटते जायें तो यह सफर रुकता है वर्ष १४९२ पर ! ठीक आज से ५०० वर्ष पूर्व का समय, जब आम तौर से सुख और अमन की जन-जीवन की सरिताने अपना प्रवाह मोड़ा- या उसे मोड़ा गया, और सरिता के मुड़ते प्रवाह के साथ जो विनाश का दौर आता है, वह शुरु हुआ। पंद्रहवीं शताब्दी के अन्त तक युरोप के बाहर का सारा विश्व युरोप के दो राष्ट्रों का-सेन और पोर्तुगल का - गुलाम था। सारे विश्व में आवागमन का एक ही मार्ग था - समुद्र; और युरोप के कई साहसिक नाविक नये नये देश, नयी भूमियाँ खोज रहे थे (आज जैसे तथाकथित रुप से मंगल व गुरु के ग्रहों तक पहुंचने की कोशिश हो रही है !) इन नये खोजे जानेवाले देशों के बारे में, इनके स्वामित्व के मुद्दे पर सेन व पोटुंगल के बीच विवाद होता था। . भारतीय संस्कृति में ही नहीं, विश्व की अन्य संस्कृतियों में भी उन दिनों धर्म-सत्ता सर्वोपरी होती थी और सामान्य रुप से न सुलझने वाले विवाद - धर्म-सत्ता के पास ले जाये जाते थे। सेन व पोटुंगल का विवाद भी उन देशों की (ईसाई) धर्मसत्ता के पास पहुँचा । उस समय छठे पोप सर्वोच्च धर्म सत्ता के रुप में आसीन थे । इस विवाद का स्थायी हल निकालते हुए उन्होंने सन् १४९२ में एक आदेश या फरमान (जिसे अंग्रेजी में Bull कहा जाता है) जारी किया कि पृथ्वी के पूर्व में जितने नये प्रदेश खोजे जायें उनका स्वामित्व पोटुंगल का हो तथा पृथ्वी के पश्चिम में जितने नये प्रदेश खोजे जायें उनका स्वामित्व सेन का हो। . चूंकि यह आदेश निकला सन् १४९२ में - यह वर्ष सारे विश्व के इतिहास को मोड़ देनेवाला वर्ष है । इसी आदेश के साथ एक फैसला यह भी हुआ कि सारे विश्व में एक ही प्रजा हो - श्वेत प्रजा, व सारे विश्व में एक ही धर्म हो - ईसाई धर्म । • और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए विश्व की सारी अश्वेत प्रजा का विनाश हो - और ईसाई के अलावा अन्य सभी धर्मों का विनाश हो । सारे विश्व पर अपना स्वामित्व मानकर और उस स्वामित्व को प्रत्यक्ष करने के लिए उठाये गये कदमों पर अब नयी दृष्टि डालने से इस निर्णय के सत्य होने का प्रमाण मिलेगा। स्वामित्व के सिद्धांत का सर्व प्रथम प्रतिपादन हुआ विश्व के नये देशों को स्पेन व पोर्तुगल के बीच बाँट कर । अन्यथा क्या अधिकार था ईसाई धर्म की चर्च संस्था के प्रधान को कि वह ईश्वर की बनायी इस धरती व.उसकी जीवसृष्टि को इस तरह 'बाँट सके? विश्व के दो प्रदेश- विशाल धरती के प्रदेश, अमरिका व भारत, इस दुर्भाग्यपूर्ण फैसले के बाद खोजे गये । सन् १४९८ में पोटुंगल के नाविक वास्को-डी-गामाने भारत की खोज की व उसके पहले सन् १४९२ में ही क्रिस्टोफर कोलंबस ने अमरिका की खोज की । अमरिका के मूल निवासी रेड इंडियन' जिनकी आबादी उस समय करीब १९ करोड़ थी. सेन की सेना (1) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004203
Book TitleMananiya Lekho ka Sankalan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy