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________________ ३६ . श्री उपासव कठिन शब्दार्थ - सहसाब्भक्खाणे - सहसा-अभ्याख्यान, रहसाब्भक्खाणे - रहस्य अभ्याख्यान, सदारमंतभेए - स्वदार-मंत्र-भेद, मोसोवएसे - मृषोपदेश, कूडलेहकरणे - कूटलेखकरण। भावार्थ - तदनन्तर श्रावक के दूसरे व्रत स्थूल-मृषावाद-विरमण' के पांच अतिचार श्रावक को जानने योग्य हैं, परन्तु आचरण करने योग्य नहीं हैं। यथा - १. सहसाभ्याख्यान २. रहस्याभ्याख्यान ३. स्वदार-मंत्र-भेद ४. मृषोपदेश और ५. कूट-लेख करण। विवेचन - सत्य-व्रत के पांच अतिचार इस प्रकार हैं - १. सहसाभ्याख्यान - बिना विचारे किसी पर झूठा कलंक लगाना। . २. रहसाभ्याख्यान - एकान्त में बातचीत करने वाले को दोष देना अथवा किसी की गुप्त बात प्रकट करना। ३. स्वदार-मंत्र-भेद - अपनी स्त्री की (अथवा किसी विश्वस्त जन द्वारा कही गई) गुप्त बात प्रकट करना। ___४. मृषोपदेश - प्रहार, रोग-निवारण आदि में सहायक मंत्र, औषधि, विष आदि के प्रयोग का उपदेश जीव-विराधना का कारण होने से इस प्रकार के वचन प्रयोग को 'मृषोपदेश' कहते हैं। यदि कोई यह सोचे कि 'मैं झूठ तो बोला ही नहीं किन्तु वह हिंसाकारी सलाह है। इसके परिहार के लिए मिथ्योपदेश को ज्ञानियों ने झूठ माना है। यह साक्षात् (परलोक पुनर्जन्म आदि विषयों में) मिथ्या उपदेश का विषय नहीं है, यदि वैसा होता तो अनाचार समझा जाता। ५. कूट-लेख करण - ‘मेरे तो झूठ बोलने का त्याग हैं, लिखने का नहीं, ऐसा समझ कर कोई (असद्भूत-झूठा) लेखन करे, जाली हस्ताक्षर करना, जाली दस्तावेज तैयार करना आदि तब तक अतिचार है, जब तक प्रमाद या अविवेक हो, विचार पूर्वक जानते हुए लिखना तो अनाचार है। अस्तेय व्रत के अतिचार तयाणंतरं च णं थलगस्स अदिण्णादाणवेरमणस्स पंच अइयारा जाणियव्वा ण समायरियव्वा, तंजहा - तेणाहंडे, तक्करप्पओगे, विरुद्धरज्जाइक्कमे, कूडतुलकूडमाणे, तप्पडिरूवगववहारे ३। कठिन शब्दार्थ- तेणाहडे - स्तेनाहत, तक्करप्पओगे - तस्कर प्रयोग, विरुद्धरजाइक्कमे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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