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________________ छठा अध्ययन - श्रमणोपासक कुण्डकौलिक - कुण्डकौलिक का प्रश्न १२१ (४) पुरुषार्थवाद का मन्तव्य है कि पुरुषार्थ के आगे शेष सारे समवाय व्यर्थ है। जो भी होता है, पुरुषार्थ से होता है। (५) नियतिवाद का अभिमत है - प्राप्तव्यो नियतिबालाश्रयेण योऽर्थः? मोऽवश्यं भवति नृणां शुभाशुभो वा। भूतानां महति कृतेऽपि हि प्रयत्ने, नाभव्यं भवति न भाविनोऽस्ति नाशा अर्थ - वही होता है जो नियति के बल से प्राप्त होने योग्य है। चाहे वह शुभ हो या अशुभ। प्राणी चाहे कितना ही प्रयत्न करे, जो होने वाला है, वह अवश्य होता है और जो नहीं होना है, वह कदापि नहीं होता है। ___उपरोक्त पाँचों समवाय मिल कर ही सत्य है। नियतिवादी कहता है कि पुरुषार्थ से यदि प्राप्ति हो जाती है, तो सभी को क्यों नहीं होती, जो पुरुषार्थ करते हैं। इधर पुरुषार्थवादी नियतिवादियों का खोखलापन बताते हुए कहते हैं कि यदि नियति से ही प्राप्त होने का है, तो पुरुषार्थ क्यों करते हो? क्यों हाथ-पैर हिलाते हो? रोटी का मुँह में जाना भवितव्यता है, तो अपने-आप पहुँच जायेगी। देव ने कुण्डकौलिक के समक्ष नियतिवाद का पक्ष प्रस्तुत किया कि यह बात अच्छी है। न तो कोई परलोक है, न पुनर्जन्म। जब वीर्य नहीं हो बल नहीं, कर्म नहीं, बिना कर्म के कैसा सुख और कैसा दुःख? जो भी होता है, भवितव्यता से होता है। ... कुण्डकौलिक का प्रश्न (४१) तए णं से कुण्डकोलिए समणोवासए तं देवं एवं वयासी-जइ णं देवाणुप्पिया! सुंदरी गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपण्णत्ती-णत्थि उट्ठाणे इ वा जाव णियया सव्वभावा, मंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपण्णत्ती-अस्थि उट्ठाणे इ वा जाव अणियया सव्वभावा, तुमे णं देवाणुप्पिया! इमा एयारूवा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवजुई दिव्वे देवाणुभावे किण्णा लद्धे, किण्णा पत्ते, किण्णा अभिसमण्णागए, किं उठाणेणं जाव पुरिसक्कारपरक्कमेणं, उदाहु अणुट्ठाणेणं अकम्मेणं जाव अपुरिसक्कारपरक्कमेणं? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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