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________________ ११४ श्री उपासकदशांग सूत्र . (३४) तए णं सा धण्णा भारिया कोलाहलं सोच्चा णिसम्म जेणेव सुरादेवे समणोवासए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं वयासी-किण्णं देवाणुप्पिया! तुन्भेहिं महया-महया सद्देणं कोलाहले कए? __ भावार्थ - तब वह सुरादेव की पत्नी धन्या कोलाहल को सुन कर जहां सुरादेव था वहां आई, आकर पति से इस प्रकार कहा - हे देवानुप्रिय! आपने जोर जोर से कोलाहल क्यों किया? तए णं से सुरादेवे समणोवासए धण्णं भारियं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिए! केऽवि पुरिसे तहेव कहेइ जहा चुलणीपिया। धण्णाऽवि पडिभणइजाव कणीयसं, णो खलु देवाणुप्पिया! तुब्भं केऽवि पुरिसे सरीरंसि जमगसमगं सोलस रोगायंके पक्खिवइ, एसणं केऽवि पुरिसे तुम्भं उवसग्गं करेइ, सेसं जहा चुलणीपियस्स तहा भणइ। एवं सेसं जहा चुलणीपियस्स णिरवसेसं जाव सोहम्मे कप्पे अरुणकंते विमाणे उववण्णे। चत्तारि पलिओवमाई ठिई, महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ५॥ णिक्खेवो॥ ॥ चउत्थं अज्झयणं समत्तं॥ भावार्थ - तदनन्तर सुरादेव श्रमणोपासक ने अपनी पत्नी धन्या से सारी घटना कही तो धन्या बोली - हे देवानुप्रिय! न तो किसी ने तुम्हारे तीनों पुत्रों को मारा है और न किसी ने सोलह रोगों का प्रक्षेप किया है। यह तो किसी पुरुष ने आपको उपसर्ग दिया है। शेष सारा वर्णन चुलनीपिता के समान जानना चाहिये। यथा - प्रायश्चित्त लेने, शुद्धिकरण, प्रतिमा आराधन, तपस्या, बीस वर्ष की श्रावक पर्याय, मासिक संलेखना यावत् प्रथम देवलोक के अरुणकांत विमान में उत्पत्तिं, चार पल्योपम की स्थिति और वहां से महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होंगे। ___निक्षेप - आर्य सुधर्मास्वामी ने जंबूस्वामी से कहा - हे जम्बू! श्रमण भगवान् महावीरस्वामी ने उपासकदशा के चौथे अध्ययन का यही अर्थ-भाव कहा था, जो मैंने तुम्हें बतलाया है। ॥ चतुर्थ अध्ययन समाप्त॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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