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________________ ६६ श्री उपासकदशांग सूत्र तए णं से कामदेवे सभणोवासए तेणं देवेणं पिसायरूवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए अतत्थे अणुव्विग्गे अक्खुभिए अचलिए असंभंते तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ। कठिन शब्दार्थ - अभीए - अभीत-भयभीत नहीं, अतत्थे - अत्रस्त, अणुविगे - अनुद्विग्न, अक्खुभिए - अक्षुभित, अचलिए - अविचलित, असंभंते - अनाकुल, तुसीणिएशांत, धम्मज्झाणोवगए - धर्म ध्यान में उपगत-संलग्न। भावार्थ - कामदेव श्रमणोपासक उस पिशाच रूपधारी देव के ये वचन सुन कर भयभीत नहीं हुए, त्रास को प्राप्त नहीं हुए, उद्विग्न नहीं हुए, क्षुभित नहीं हुए, शुभ परिणामों से चलित नहीं हुए और कायिक चेष्टाओं से भी संभ्रान्त नहीं हुए, किन्तु शान्तिपूर्वक धर्मध्यान करते रहे। (१८) . . तए णं से देवे पिसायरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता दोच्चंपि तच्चंपि कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी - 'हं भोकामदेवा! समणोवासया! अपत्थियपत्थियाजइणंतुम अजजावववरोविजसि।' भावार्थ - पिशाच का रूप धारण किये हुए देव ने कामदेव श्रमणोपासक को निर्भय यावत् धर्मध्यान में निरत देखा तो दूसरी बार और तीसरी बार कहा कि हे अप्रार्थितप्रार्थी श्रमणोपासक कामदेव! यावत् तलवार से टुकड़े टुकड़े कर दूंगा जिससे हे देवानुप्रिय! तुम असमय ही प्राणों से हाथ धो बैठोगे। तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चंपि तच्चंपि एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव धम्मज्झाणोवगए विहरइ। . भावार्थ - श्रमणोपासक कामदेव उस देव द्वारा दूसरी बार, तीसरी बार यों कहे जाने पर भी निर्भय रहा, अपने धर्मध्यान में संलग्न रहा। तए णं से देवे पिसायरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव विहरमाणं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते (५) तिवलियं भिउडिं णिडाले साहटु कामदेवं समणोवासयं णीलुप्पल जाव असिणा खण्डाखण्डिं करेइ। तए णं से कामदेवे समणोवासए तं उज्जलं जाव दुरहियासं वेयणं सम्मं सहइ जाव अहियासेइ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004202
Book TitleUpasakdashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_upasakdasha
File Size20 MB
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