SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८२ प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु०१ अ०२ ***** "उदयति यदि भानुः पश्चिमायां दिशायां। प्रचलति यदि मेरुः शीततां यातित वन्हिः॥ विकसति यदि पद्मं, पर्वताग्रं शिलायां। तदपि न चलतीयं, भाविनी कमरेखा॥" - (यद्यपि सूर्य पूर्व दिशा में ही उदय होता है, तथापि किसी कारण) सूर्य, पश्चिम में उदय हो जाय, स्थिर सुमेरु पर्वत चलायमान हो जाये, उष्णस्वभावी अग्नि शीतल हो जाये, पर्वत पर रही हुई शिला पर कमल उत्पन्न हो जाय, ये सब अनहोने कार्य कभी दैवयोग से हो भी जाये; परन्तु भावीभाव की जो कर्म रेखा खींच गई, वह कभी अन्यथा नहीं होती। नियति का नियम अपरिवर्तनीय है। काल, स्वभाव या पुरुषार्थ किसी की भी शक्ति नहीं जो नियति को अन्यथा कर सके। नियति की प्रतिकूलता से पुरुषार्थ का फल व्यर्थ हो जाता है, विपरीत हो जाता है और बिना पुरुषार्थ के ही कोई दूसरा उस फल को प्राप्त कर लेता है। ___सपेरे के एक पिटारे (करंडिये) में सांप बन्द था और दूसरे में सपेरे का सामान तथा खाने-पीने की चीजें। एक चूहा मिष्टान्न की सुगन्ध से आकर्षित होकर आया और पिटारा काटने लगा। चूहे को मिष्टान्न खाने की लालसा थी। वह शीघ्रता से काटने लगा। उस पिटारे में रहा हुआ बन्दी सांप भूखा था, वह स्वतंत्र होने के लिए छटपटा रहा था। अचानक पिटारा कटा, चूहा पिटारे में घुसा, उधर सर्प मुंह खोले तैयार ही था। चूहे को गटक गया और उसी मार्ग से बाहर निकल कर चल दिया। चूहे के लिए पुरुषार्थ का फल विपरीत-विनाशक हुआ और उसके पुरुषार्थ का फल सांप को दोहरा मिला। भूख मिटी और स्वतंत्रता मिली। सांप बिना पुरुषार्थ के ही फल पा गया। यह सब नियति का ही प्रभाव है। कहा है कि - कान्तं वक्ति कपोतिका कुलतया, नाथान्तकालोऽधुना। व्याधोऽधो धृतचापसज्जितशरः श्येनः, परिभ्राम्यति॥ इत्थं चिन्तयतोः सदष्ट इषुणा, श्येनोऽपि तेनाहत। स्तुणं तौ तु यमालयं प्रतिगतो, दैवी विचित्रा गतिः॥१॥ - एक कबूतर के जोड़े को ऊपर से बाज झपटकर हड़पना चाहता था और नीचे शिकारी बाण मारकर गिराने के लिए निशाना साधे हुए था। कपोतिका अपने पति से कहती है - 'हे नाथ! अब अपना अन्तकाल आ गया। इस दोहरे संकट से हम बच नहीं सकेंगे। वे दोनों चिन्ता-मग्न थे कि बिल में से एक सर्फ निकला और शिकारी के पांव में डसा। शिकारी विचलित हो गया। उसके हाथ कम्पित हो गए और बाण छूटकर बाज के जा लगा। बाण लगने से बाज मर गया और सांप के विष से शिकारी भी मर गया। इस प्रकार कबूतर का जोड़ा सुरक्षित रह गया। यह दैवी-भवितव्यता की विचित्र गति है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy