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________________ 294 प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० 2 अ०५ **************************************************************** भावार्थ - इक्कीस सबल-दोष, बाईस परीषह, सूत्रकृतांग के तेईस अध्ययन, चौबीस प्रकार के देव, पच्चीस भावनाएं, दशा-कल्प-व्यवहार के उद्देशन काल छब्बीस, अनगार के सत्ताईस गुण, अट्ठाईस आचार-प्रकल्प, उन्नतीस पाप-श्रुत, महामोहनीय के तीस स्थान,सिद्धों के इकत्तीस गुण, बत्तीस योगसंग्रह बत्तीस देवेन्द्र और तेतीस आशातना। इस प्रकार एक से लगाकर क्रमश: एक-एक की वृद्धि करते हुए यावत् तेतीस तक के भेदों में श्रद्धान और हेयोपादेय में विवेक युक्त होकर, त्यागने योग्य स्थानों का त्याग करे और आराधने योग्य का पालन करे। इस प्रकार जिनेश्वर देवों से प्ररूपित सत्य एवं शाश्वत भाव वाले बहुत से अवस्थित स्थानों में संदेह और आकांक्षा को हटाकर निदान, गारव और लुब्धता से रहित तथा समझदारी से मन, वचन और काया से गुप्त (संयमी) बने और जिनेश्वर भगवान् के शासन में दृढ़ श्रद्धा रखे। . विवेचन - शबल दोष इक्कीस - 1. हस्त-कर्म करना 2. मैथुन-सेवन 3. रात्रि-भोजन 4. आधाकर्मी आहारादि सेवन 5. राजपिण्ड भोगना 6. क्रीत, प्रामित्य (उधार लिया) छिना हुआ, भागीदार की आज्ञा बिना और स्थान पर लाकर दिया हुआ लेना 7. प्रत्याख्यान भंग करना 8. छह महीने पूर्व गण बदलना 9. एक महीने में तीन बार नदी उतरना 10. एक महीने में तीन बार माया का सेवन करना 11. शय्यातर-पिण्ड लेना 12. जान-बूझकर हिंसा करना 13. जानकर झूठ बोलना 14. जानकर अदत्त लेना 15. जानकर सचित्त पृथ्वी पर बैठना-सोना 16. गीली और सचित्त भूमि पर बैठना 17. जानकर सचित्त रज वाली या जीव वाली, बीज, हरी आदि युक्त भूमि, शिला या पाट पर बैठना सोना या कायोत्सर्ग करना 18. जान-बूझकर कन्द, मूल, पत्रादि खाना 19. एक वर्ष में दस बार नदी उतरना वर्ष में दस बार माया का सेवन करना और 21. जानकर सचित्त हाथ पात्र आदि से दिया हुआ लेना और भोगना। (दशाश्रुतप्कन्ध 2) परीषह बाईस - 1. क्षुधा 2. पिपासा 3. शीत 4. उष्ण 5. दंशमशक 6. अचेल 7. अरति 8. स्त्री 9. चर्चा 10. निषद्या 11. शय्या 12. आक्रोश 13. वध 14. याचना 15. अलाभ 16. रोग 17. तृण-स्पर्श 18. जल्ल (मैल) 19. सत्कार-पुरस्कार 20. प्रज्ञा 21. अज्ञान (अल्प ज्ञान) और 22. दर्शन। (उत्तराध्ययन 2) देव चौबीस - 10 भवनपति, 8 व्यन्तर, 5 ज्योतिषी और 1 वैमानिक। अथवा-जिनेश्वर देव चौबीस। - भावना पच्चीस - पांच महाव्रतों की प्रत्येक की पांच-पांच भावना है। चार महाव्रत की बीस भावना का वर्णन इस सूत्र में चार अध्ययन में हो चुका और इस महाव्रत की पांच भावना आगे कही जायेगी। * अनगार के सत्ताईस गुण - 5 महाव्रतों का पालन, 5 इन्द्रियों का दमन, 4 कषाय का त्याग ये, 14 हुए। 15. भावसत्य 16. करणसत्य 17. योगसत्य 18. क्षमा 19. वैराग्य 20. मनसमाधारण 21. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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