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________________ 280 प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० 2 अ०४ ****************************************************** विवेचन - ब्रह्मचर्य व्रत की सुरक्षा के लिए सर्वप्रथम आवश्यकता है-'विविक्त शयनासन' - स्त्री, नपुंसक और पशुओं से रहित एकान्त स्थान की। पुरुष के लिए मैथुन सेवन का प्रमुख साधन स्त्री है। अतएव सूत्रकार ने इस पाठ में पुरुष की अपेक्षा से स्त्रीयुक्त स्थान में रहने का निषेध किया है, किन्तु उपलक्षण से नपुंसक और पशु युक्त स्थान भी वर्जित समझना चाहिए। स्त्री की अपेक्षा यही पाठ, पुरुष नपुंसक और पशु युक्त स्थान निषिद्ध समझना चाहिए। मनुष्यों में मैथुन संज्ञा, अन्य जीवों से अधिक मानी गई है और मैथुन मुख्यतः स्त्री-पुरुष में होता है। वेदोदय के कारण एक दूसरे को देखते ही आकर्षित होते हैं, इसलिए सूत्रकार ने ब्रह्मचर्य रक्षा के लिए सर्वप्रथम स्त्रीयुक्त स्थान को वर्जित बताया है। यह ब्रह्मचर्य रक्षा की प्रथम वाड़ है। जो लोग स्त्री और पुरुष के विशेष सम्पर्क, अमर्यादित सह-निवास पर और सह व्यवसाय. पर जोर देते हैं, वे चारित्रिक विशुद्धि की उपेक्षा करते हैं। उन्हें विशुद्ध दृष्टि से सोचना चाहिए। द्वितीय भावना-स्त्री-कथा वर्जन बिइयं णारीजणस्स मज्झे ण कहियव्वा कहा विचित्ता विब्बोय-विलास-संपउत्ता हाससिंगार-लोइयकहव्व मोहजणणी ण आवाह-विवाह-वर-कहा विव इत्थीणं वा सुभग-दुभगकहा चउसंढेि य महिलागुणा ण वण्ण-देस-जाइ-कुल-रूव-णाम-णेवत्थपरिजण-कहा इत्थियाणं अण्णा वि य एवमाइयाओ कहाओ सिंगार-कलुणाओ तवसंजमबंभचेर-घाओवघाइयाओ अणुचरमाणेणं बंभचेरंण कहियव्वा ण सुणियव्वा ण चिंतियव्वा। एवं इत्थीकहविरइसमिइजोगेणं भाविओ भवइ अंतरप्या आरयमणविरयगामधम्मे जिइंदिए बंभचेर गुत्ते। शब्दार्थ - बिइयं - द्वितीय, णारी जणस्स - स्त्रियों के, माझे - बीच में, ण कहियव्वा - न कहनी चाहिए, कहा विचित्ता - विचित्र प्रकार की कथा, विब्बोय विलास संपउत्ता - विव्वोक-स्त्रियों की कामुक चेष्टा विलास-स्मित-कटाक्ष युक्त, हाससिंगार-लोइयकहव्व - हास्य और शृंगार-रस प्रधान लौकिक कथा की तरह, मोहजणणी - मोह उत्पन्न करने वाली, ण आवाह-विवण्ण वरकहाविव - द्विरागमन-गौना और विवाह की कथा भी न कहनी चाहिए, इत्थीणं वा सुभग-दुभग-कहा- स्त्रियों की सौभाग्य दुर्भाग्य की कथा, चउसट्ठीयं महिलागुणा - स्त्रियों की चौसठ कलाएं, ण वण्ण-देस-जाइकुल-रूव णाम-णेवत्थ-परिजण कहा - स्त्रियों के वर्ण-रंग, रूप, देश, जाति, कुल, रूप - सौन्दर्य, नाम, नेपथ्य और परिजन सम्बन्धी कथाएं, अण्णा वि य एवमाइयाओ - अन्य भी इसी प्रकार की, कहाओ सिंगार कलुणाओ- शृंगार और करुणा से युक्त कथाएँ, तव-संजम-बंभचेर-घाओवघाइयाओतप, संयम और ब्रह्मचर्य की घात और उपघात करने वाली, अणुचरमाणेणं बंभचेरं - ब्रह्मचर्य के पालन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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