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________________ १२५ चोर को बन्दीगृह में होने वाले दुःख ***#wwwwwwwwwwwwwwwwwwww w w******************************** पापकर्म करने वाले, असुभपरिणया - अशुभ-पाप परिणाम युक्त, दुक्खभागी - दुःख भोगने वाले, णिच्चाइलदुहमणिव्वुइमणा - इनका मन सदैव आकुल-व्याकुल अस्वस्थ तथा संताप युक्त रहता है अथवा-वे सदैव प्राणियों की स्वस्थता के नाशक एवं संतापित करने वाले होते हैं, इहलोए चेव - इस लोक में, किलिस्संता - क्लेशित रहते हैं, परदव्वहराणरा - पराये धन को हरण करने वाले वे मनुष्यचोर, वसण-सयसमावण्णा - सैकड़ों दुःखों से पीड़ित हो कर। ___ भावार्थ - संसार में सर्वत्र उनकी निंदा होती है। वे भयंकर माने जाते हैं। वे अपने साथियों से चोरी करने के लिए गुप्त मंत्रणा करते रहते हैं और सोचते हैं कि आज किसके यहाँ चोरी की जाये, किसे लूटा जाय।' वे बहुत-से लोगों के (विवाह आदि उत्सव में) विघ्न खड़ा कर देते हैं और जो मद में मस्त हो कर अथवा यों ही सोये हुए निद्रा-मग्न तथा अपनी रक्षा के विषय में विश्वस्त रहते हैं, उन लोगों को घात लगा कर मार डालते हैं और उनका धन लूट लेते हैं। लोगों की विपत्ति-रोग अथवा मरण प्रसंग पर या लग्नादि शुभ प्रसंग पर उपस्थित जन-समूह.को लूटने या चोरी करने का अवसर देखते रहते हैं। वे भेड़िये के समान मनुष्य के रक्त के प्यासे बनकर इधर-उधर फिरते रहते हैं। वे राजा की मर्यादा का भी उल्लंघन करते हैं। वे चोर लोग सदाचारियों एवं सज्जनों द्वारा सदैव निन्दित होते रहते हैं। अपने चौर्यकर्म के द्वारा वे पापकर्मों का संचय करते रहते हैं। उनकी भावनाएं अशुभ रहती हैं। वे सदैव अपनी तथा दूसरों की स्वस्थता एवं प्रसन्नता के नाशक तथा व्याकुलता संताप एवं दुःख के कारण होते रहते हैं। वे स्वयं भी दुःख भोगते हैं। पराये धन को हरण करने वाले वे चोर, इस लोक में भी सैकड़ों दुःखों से युक्त हो कर क्लेशित रहते हैं। __चोर को बन्दीगृह में होने वाले दुःख तहेव केइ परस्स दव्वं गवेसमाणा गहिया य हया य बद्धरुद्धा य तुरियं अइधाडिया पुरवरं समप्पिया चोरग्गह-चारभडचाडुकराण तेहि य कप्पडप्पहार-णिद्धयआरक्खियखरफरुसवयण-तज्जण-गलच्छल्लुच्छल्लणाहिं विमणा चारगवसहिं पवेसिया णिरयवसहिसरिसं तत्थवि गोमियप्पहार-दूमणणिब्भच्छण-कडुयवयणभेसणगभयाभिभूया अक्खित्तणियंसणा मलिणदंडिखंडणिवसणा उक्कोडालंचपासमग्गणपरायणेहिं दुक्खसमुदीरणेहिं गोम्मियभडेहिं विविहेहिं बंधणेहिं। शब्दार्थ - तहेव - इसी प्रकार, परस्स - दूसरों का, दव्वं - द्रव्य, गवेसमाणा - खोज करते हुए, गहिया - पकड़े जाते हैं, हया - पीटे जाते हैं, बद्धरुद्धा - बांधे जा कर कारागार में बन्द कर दिये जाते हैं, तुरियं - त्वरित-शीघ्रतापूर्वक, अइधाडिया - दौड़ाये जाते हैं, पुरवरं - नगर में, समप्पिया - समर्पित किये जाते हैं, चोरग्गहचारभडचाडुकराण - चोरों को पकड़ने वाले चाटुकार सुभटों को, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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