SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०८ प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु०१ अ०३ **************************************************************** स्तेनिका-चौर्यकर्म, १४. हरणविप्पणासो - हरणविप्रणास-दूसरे के धन का हरण करके नष्ट करना, १५. आदियणा - आदान-स्वामी की अनुमति बिना लेना, १६. लुंपणा धणाणं - धनलोपन-दूसरे के धन को हरण करके छुपा देना १७. अप्पच्चओ - अप्रत्यय-अविश्वास १८. अवीलो - अवपीड़न-दूसरों को पीड़ा उत्पन्न करने वाला १९. अक्खेवो- आक्षेप-दूसरे के हाथ से द्रव्य का हरण करना, २०. खेवोक्षेप-दूसरे से धन लेकर फेंकना २१. विक्खेवो - विक्षेप-दूसरे के धन को विशेष रूप से अपने स्थान पर डालना, २२. कूडया - कूटता-कपटतायुक्त द्रव्य हरण २३. कुलमसी य - कुलमषी-कुल को कलंकित करने वाला, २४. कंखा - कांक्षा-पर-द्रव्य की इच्छा २५. लालप्पण पत्थणाय - लालपन प्रार्थना-चोरी करके स्वीकार नहीं करना और दीन वचनों से प्रार्थना करना २६. आससणाय वसणं - आशसनाय व्यसन-मृत्यु जैसे भय का जनक व्यसन-भयंकर लत २७. इच्छामुच्छायः - इच्छा मूर्छाचौर्यकर्म करने की घृणित इच्छा एवं आसक्ति २८. तण्हागेही - तृष्णागृद्धि-पर वस्तु प्राप्त करने की अत्यन्त आसक्ति एवं लुब्धता २९.णियडिकम्मं - नियतिकर्म अथवा निकृतिकर्म-कूड़ कर्म-मायाचार, ३०. अप्परच्छंति वि य - अपरोक्ष-धनवान् के परोक्ष में किया जाने वाला कुकर्म, एयाणि - ये, एवमाईणि- इस प्रकार के इत्यादि, णामधेजाणि - नाम, अदिण्णादाणस्स - अदत्तादान के, पावकलिकलुस - विग्रह और क्लेश की कालिमायुक्त पाप, कम्मबहुलस्स - कर्मबन्ध की अधिकता वाला-अशुभ कर्म का भण्डार, अणेगाई - अनेक नाम। विवेचन - इस सूत्र में अदत्तादान रूपी पाप के गुण-निष्पन्न तीस नाम बताये गये हैं। अन्त में आगमकार ने कहा है कि इसी प्रकार इस पापकर्म को बताने वाले अन्य नाम भी हो सकते हैं। किन्तु वे होंगे इसके पापी-कृत्य एवं उसके परिणाम को विभिन्न अपेक्षाओं से बताने वाले। अब आगे के सूत्र में चौर्यकर्म करने वाले का वर्णन किया जाता है।. चौर्यकर्म के विविध प्रकार ते पुण करेंति चोरियं तक्करा परदव्वहरा छेया, कयकरणलद्धलक्खा साहसिया लहुस्सगा अइमहिच्छलोभगच्छा दद्दरओवीलका य गेहिया अहिमरा अणभंजगभग्गसंधिया रायदुट्ठकारी य विसयणिच्छूढ-लोकबज्झा उद्दोहग-गामघायग-पुरघायगपंथघायग-आलीवग तित्थभेया लहुहत्थसंपउत्ता जूइकरा खंडरक्ख-त्थीचोर-पुरिसचोरसंधियेच्छा य गंथीभेयग-परधण-हरण-लोमावहारा अक्खेवी हडकारगा णिम्महगगूढचोरग-गोचोरग-अस्सचोरग दासीचोरा य एकचोरा ओकड्डग-संपदायग-उच्छिपगसत्थघायग-बिलचोरीकारगा * य णिग्गाहविप्पलुंपगा बहुविहतेणिक्क-हरणबुद्धी एए अण्णे य एवमाई परस्स दव्वाहि जे अविरया। * "बिलकोलीकारगा' - पाठ भेद। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy