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________________ ९८ सुगन्धित धूप का आग पर डालना, पुप्फ-फलसमिद्धे पुष्प और फल के साथ, पायच्छित्ते करेह - प्रायश्चित्त करो, पाणाइवायकरणेणं - प्राणातिपात - हिंसा करके, बहुविहेणं अनेक प्रकार से, विवरीउपाय- विपरीत उत्पात, दुस्सुमिण दुःस्वप्न, पाव सउण अशुभ शकुन, असोमग्गहचरियंअसौम्य - क्रूर ग्रह चल रहे हैं, अमंगलणिमित्त अमंगल के निमित्त का, पडिग्घायहेंडं प्रतिघात नष्ट करने के लिए, वित्तिच्छेयं वृत्तिच्छेदन- आजीविका नष्ट करना, करेह कर दो, मा देह - मत दो, किंचि दाणं - कुछ भी दान, सुठुहओ - अच्छा मारा, सुट्ठछिण्णोभिण्णोत्ति - अच्छा काटा और अच्छा भेदन किया, उवदिसंता- उपदेश करते, एवमंविह इस प्रकार, करेंति करते हैं, अलियं मिथ्या, मणवायाए कम्मुणा मन-वचन और काय-क्रिया से, अकुसला - अकुशल, अणज्जा अनार्य, अलियाणा - मिथ्याचारी, अलियधम्मणिरया - मिथ्याधर्म में रत - आसक्त, अलियासु कहासु - मिथ्या कथा में, अभिरमंता - रमण करते हुए, तुट्ठा सन्तुष्ट रहते हुए, अलियं करेत्तु - मिथ्या कार्य करते हैं, बहुप्पयारं - बहुत प्रकार से।' भावार्थ - मिथ्या एवं हिंसक उपदेश - आदेश देते हुए वे अज्ञानीजन कहते हैं कि - 'शत्रुओं की छोटी, मध्यम श्रेणी की और बड़ी नौकाओं को तोड़-फोड़ कर नष्ट कर दो और अपनी सेना को बढ़ाओ, जो समर-भूमि में जाकर घोर संग्राम करे। सैन्य सामग्री से भरे हुए गाड़े आदि वाहनों को आगे चलने दो ।' - Jain Education International प्रश्नव्याकरण सूत्र श्रु० १ अ० २ ******** - - - - - For Personal & Private Use Only -- **************** - - - 'अब बालक का चूड़ाकर्म कर दो। बालक किशोरावस्था में आ गया है, अब इसका यज्ञोपवित्त संस्कार कर दो। तुम्हारा पुत्र अथवा पुत्री विवाह के योग्य हो गए हैं, अब इनका विवाह शीघ्र ही कर दो । अमुक दिन, करण मुहूर्त्त, नक्षत्र और तिथि में यज्ञ होना चाहिए। सौभाग्य एवं समृद्धि के लिए आज प्रमोदयुक्त स्नान होना चाहिये अथवा संतति वृद्धि के लिए वधू को स्नान करवाना चाहिए। विपुल मात्रा में अन्न-पानी आदि भोज्य सामग्री तैयार करवाओ और अभिमन्त्रित जल से स्नान, रक्षाकर्म तथा शांतिकर्म करो । चन्द्र और सूर्य पर राहु का ग्रहण लग गया है। इनके दुष्प्रभाव को नष्ट करने के लिए • अनुष्ठान करो। रात्रि में बुरे स्वप्न आये, उन्हें व्यर्थ करने के लिए शांतिकर्म करवाओ। स्वजन - परिजन और अपने निज के जीवन की रक्षा के लिए आटे का मुण्ड (मस्तक) बनाकर महामाया - चण्डिका को भेंट चढ़ाओ । विविध प्रकार की औषधियों और मद्य-मांस से युक्त भोजन - अन्न-पानी का भोग तथा सुगन्धित माला, चन्दनलेप, धूप-दीप (आरत्रिक) पुष्प - फलादि के साथ बकरे आदि पशु का मस्तक देव को चढ़ाओ। इस प्रकार बहुविध प्राणों का बलिदान कर प्रायश्चित्त करो। तुमने उत्पात देखे हैं, तुम्हें अनिष्टकारी स्वप्न आते हैं, शकुन भी तुम्हें बुरे हुए हैं, तुम पर क्रूर ग्रहों का उपद्रव है। इन सभी अमंगलों एवं अनिष्टकारी संभावनाओं के निवारण के लिए पशु का बलिदान करो। अमुक की आजीविका नष्ट कर दो। उसे कुछ भी मत दो। तुमने उसे मार-पीटकर अच्छा ही किया है। उसकी नाक-कान आदि काट लिये यह बहुत अच्छा किया। भाले या तीर से उसका भेदन करके तुमने श्रेष्ठ कार्य किया है।" = www.jainelibrary.org
SR No.004201
Book TitlePrashna Vyakarana Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages354
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size8 MB
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